Book Title: Jeev Vigyan
Author(s): Pranamyasagar
Publisher: Akalankdev Vidya Sodhalay Samiti

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Page 84
________________ जीव-विज्ञान रहते हैं। इसलिए आचार्य कहते हैं कि आप अपनी उन लेश्याओं के परिणामों को बदले। आप अपने मन को शुक्ललेश्या, पीतलेश्या, पद्मलेश्या से अपने मन को बार-बार भिगोंए। आपका मन जब उन परिणामों में ढल जाएगा तो आपके परिणाम बिल्कुल शान्त होने लगेंगे। आपके अन्दर किसी भी वेद का कोई उद्वेग नहीं होगा। आप अपने अंदर समता के भाव का अनुभव कर सकेंगे। यह इसका मनोविज्ञान हैं। इस तरह से इस सूत्र में यह कहते हैं कि जो देव होते हैं वे नपुंसक लिंग वाले नहीं होते हैं। वे केवल पुरुष वेद या स्त्री वेद वाले होते हैं। यह सीमा भी स्वर्गों में सोलहवें स्वर्ग तक है। उसके बाद नौ ग्रैवेयक, नव अनुदिश, पंच अनुत्तरों में पुरुष वेद ही होता है। उनमें पुरुष वेद होते हुए भी अन्य वेद से रमण करने का भाव नहीं होता है। इसलिए आप एकान्त से यह मत समझना कि देव असंयमी ही होते हैं। देव देवियों के साथ मनोरंजन करने में ही लगे रहते हैं। इससे यह सिद्ध होता है जैसा देवों में पुरुष वेद होता है वैसे ही उनके भावों में होता है। उनमें वेद-वैषम्य नहीं होता है कि द्रव्य से कुछ हो और भावों से कुछ और हो। यहाँ पर जो यह सूत्र 'न देवाः' आया है वह ऊपर वाले सूत्र 'नपुंसकानि' उस लिंग की अपेक्षा से कहा गया है। अर्थात् लिंग शब्द, द्रव्य और भाव इन दोनों वेदों की समानता को बताता है ऐसा फलित होता है। यह चिंतन आचार्य द्वारा दिया गया है। लिंग और वेद में यहाँ क्या अन्तर है?लिंग कहने से तो द्रव्य और भाव दोनों समानता की ओर जा रहे हें और वेद कहने से विषमता भी सम्भव है। क्योंकि आगे के सूत्र में बताया जा रहा है शेषास्त्रिवेदाः ।। 52|| अर्थ-शेष बचे जीव (गर्भज मनुष्य और तिर्यंच) तीनों वेद वाले होते हैं। आचार्य जी ने यहाँ पर वेद शब्द का प्रयोग किया और ऊपर लिंग शब्द का प्रयोग किया ऐसा क्यों?यहाँ पर भी ऐसा कह सकते थे कि “शेषास्त्रिलिंगानि” शेष तीन लिंग वाले होते हैं। लेकिन इस सूत्र में वेद शब्द का प्रयोग किया, ऐसा क्यों?क्योंकि जो बचे उनमें वेद-वैषम्य सम्भव है। अर्थात् बाहर से कुछ हो सकता है और भीतर से कुछ और हो सकता है। द्रव्य की अपेक्षा से पुरुष हो सकता है और भावों की अपेक्षा से स्त्री हो सकता है। शेष बचे जीव अर्थात् गर्भज, मनुष्य और तिर्यंच-ये तीनों वेद वाले हो सकते हैं। इनमें सम्मूर्छन जन्म वालों को छोड़ दो, देवों को छोड़ दो नारकियों को छोड़ दो। उसके बाद में जितने भी जीव बचे वे सभी तीनों वेद वाले हो सकते हैं। गर्भज में भी जरायुज, अण्डज और पोत जन्म वाले जीव में वेद-वैषम्य हो सकता है। अन्तिम सूत्र में आचार्य बताते हैं कौन-कौन से जीव पूरी आयु भोगकर ही मरण करते हैं? 84

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