Book Title: Jeev Vigyan
Author(s): Pranamyasagar
Publisher: Akalankdev Vidya Sodhalay Samiti

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Page 85
________________ जीव-विज्ञान औपपादिक-चरमोत्तमदेहाऽसंख्येय-वर्षायुषोऽनपवायुषः ।। 53 ।। चरमोत्तम देह उसी भव से मोक्ष जाने वाले उपपाद जन्म देव नारकी असंख्यात वर्ष आयु भोगभूमिया मनुष्य और तिर्यंच अनपवर्त्य आयु अर्थ-औपपादिक अर्थात् उपपाद जन्म वाले देव और नारकी, चरमोत्तमदेह अर्थात् उसी शरीर से मोक्ष जाने वाले और असंख्यात वर्ष की आयु वाले–भोगभूमियों के जीव पूरी आयु भोग कर ही शरीर छोड़ते हैं। शस्त्र आदि से इनकी आयु नहीं छिदती। इनके अतिरिक्त अन्य जीवों की आयु का कोई नियम नहीं है। आचार्य मरण के विषय में बता रहे हैं-किन जीवों के किस तरह के मरण होते हैं? आचार्य कहते हैं-मरण दो प्रकार का होता है। एक सकाल मरण और दूसरा अकाल मरण । शास्त्रीय भाषा में अकाल मरण को अपवर्त्य आयु वाला कहा जाता है। जिसका सकाल मरण होता है उसे अनपवर्त्य आयु वाला कहा जाता है।। ऐसे कौन से जीव होते हैं जिनका अकाल मरण नहीं होता है?उनको इस सूत्र में दिया है। इनके अतिरिक्त जितने भी जीव बचेंगे उनका अकाल मरण सम्भव होगा। यह अर्थ इसी सूत्र से निकलकर आ जाएगा। कुछ लोग सोचते हैं कि मनुष्यों और तिर्यंचों का सकाल मरण होता है और मानते हैं कि कभी अकाल मरण नहीं होता है, जो लोग ऐसा बोलते हैं वे इन सूत्रों को झुठला रहे हैं। आचार्य कहते हैं-उपपाद जन्म वाले जीवों की अनपवर्त्य आयु होती है। जितनी आयु मिली है उतनी आयु को भोगकर मरण होना, इसे सकाल मरण कहते हैं। ये कौन से जीव होंगे?तो देव और नारकी उपपाद जन्म वाले होते हैं। -85

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