Book Title: Jeev Vigyan
Author(s): Pranamyasagar
Publisher: Akalankdev Vidya Sodhalay Samiti

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Page 81
________________ जीव-विज्ञान पुरुष वेद के साथ सम्भव है स्त्रीवेद के साथ सम्भव नहीं है। स्त्रीवेद के उदय में जो भाव होते हैं, वे भी भाव बताए हैं और तीनों वेदों के उदय में होने वाले भावों का व्याख्यान भी आगम में पूर्ण रूप से मिलता है। इसलिए यह वेद वैषम्य जो होता है उसको ध्यान में रखते हुए ही इन सूत्रों को पढ़ना। यहाँ आचार्य जो कहते हैं कि नारकी और सम्मूर्छन जीव नपुंसक होते हैं उसके लिए दोनों वेदों पर अपनी दृष्टि ले जाना। ये द्रव्य से भी नपुंसक है और भावों से भी नपुंसक है। इस सूत्र में द्रव्य और भाव दोनों की अपेक्षा से ही कहा है। क्योंकि नरक पर्याय में तो निश्चित है जैसा द्रव्य वेद होगा वैसा ही भाव वेद होगा। नारकी जीव द्रव्य से भी नपुंसक होते हैं और भावों से भी नपुंसक होते हैं। ऐसे ही सम्मूर्छन जन्म लेने वाले जितने भी जीव होंगे वे भी द्रव्य और भाव दोनों से ही नपुंसक होते हैं। हमें विचार करना चाहिए कि सम्मूर्छन जीव कौन-कौन से होते हैं?आपको पहले बताया गया था एकेन्द्रिय से लेकर चार इन्द्रिय तक के जीव सम्मूर्छन होते हैं। उनका एक नपुंसक वेद ही होता है। जब आप साइंस पढ़ोगे तो आपको कुछ विषमताएं सुनने को मिलेगी। साइंस कहता है जितने भी मच्छर मक्खी आदि होते हैं उनके अंदर भी नर-मादा पाए जाते हैं। साइंस इनके अंदर भी दोनों प्रकार के वेद मानता है। साइंस नपुंसक वेद तो शायद मानता ही नहीं है। ये Contradiction विरोधाभास-पैदा हो जाता है इस साइंस से और जैन-साइंस से। इसे हम अपनी Jain Meta Physics कह सकते हैं। इस साइंस के अंतर की व्याख्या किस प्रकार से की जाये? साइंस कहता है-एकेन्द्रिय से लेकर चार इन्द्रिय तक के सभी जीव दोनों प्रकार के वेद वाले हो सकते हैं। जबकि जैन-विज्ञान कहता है वे नपुंसक ही होंगे। इस समस्या का समाधान कैसे किया जाए?एक विचार हमारे मन में आता है उसे आपको बताता हूँ | नपुंसक जीवों के जो भाव होते हैं वे दोनों प्रकार के ही होते हैं-स्त्री से भी रमण करने के होते हैं और पुरुष से भी रमण करने के होते हैं। अगर हम इस भाव-परिणति को देखें तो हमें एक बात समझ में आती है कि नपुंसक वाले जीवों में भी इस प्रकार की परिणति सम्भव है कि स्त्री से रमण करने के भाव हो सकते हैं और किसी में पुरुष से रमण करने के भाव अधिक हो सकते हैं। अगर हम यहाँ अनेकान्त की उस मुख्य गौण विवक्षा को सामने ले आए तो साइंस और जैन साइंस में Corelation सामंजस्य हो सकता है। साइंस के अनुसार अगर यह कहा गया कि इसके अंदर पुरुष से रमण करने की इच्छा है या इसके अंदर स्त्री से रमण करने की इच्छा है तो वह उस नपुंसक वेद के मुख्यता और गौणता के भाव से आप लगा सकते हो। क्योंकि नपुंसक वेदी में दोनों ही प्रकार के वेद होंगे। दोनों प्रकार के भावों में से किसी जीव में स्त्री भाव की मुख्यता होगी और किसी में पुरुष भाव की मुख्यता होगी। लेकिन उन भावों की परिणति उनके अंदर मुख्य-गौण रूप से चल रही है और उसको देखकर हम यह कह सकते हैं कि यह नर है या मादा है लेकिन उनके अंदर देखा जाए तो यह उनका नपुंसक वेद है। आप इस पर विचार कर सकते हैं। इस विचार के माध्यम से अगर हम देखेंगे तो आपको ऐसे जीवों की परिणति दिखाई देंगी जिनमें 81

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