Book Title: Jeev Vigyan
Author(s): Pranamyasagar
Publisher: Akalankdev Vidya Sodhalay Samiti

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Page 75
________________ जीव-विज्ञान देव चाहिए। विग्रहगति में मात्र | एक साथ एक जीव के कितने शरीर | तैजस, कार्मण शरीर होते हैं। यदि तीन होंगे तो तैजस, कार्मण औदारिक अथवा तैजस, कार्मण, कौन तेजस, तेजस, तेजस, तेजस, तेजस, वैक्रियिक। चार होंगे तो से- कार्मण कार्मण, | | कार्मण, कार्मण, कार्मण, औदारिक | वैक्रियिक औदारिक, औदारिक, तैजस, कार्मण औदारिक, आहारक वैक्रियिक आहारक। परन्तु एक साथ पाँच शरीर नहीं होते हैं। हातहास्वामी मोड़े वाली | मनुष्य, छठे गुण- विक्रिया विग्रह गति तिर्यंच नारकी स्थानवर्ती | ऋद्धिधारी जैसा कि पहले में स्थित आहारक मुनिराज सूत्र में बताया गया था जीव ऋद्धिधारी एक आत्मा में एक साथ मुनिराज कितने ज्ञान हो सकते हैं इसी तरह इस सूत्र में भी यह बताया गया है कि एक जीव एक साथ कितने शरीर को धारण कर सकता है। एक जीव आत्मा में कम से कम दो शरीर को धारण कर सकता है। जब विग्रहगति में होगा तो तैजस, कार्मण-दो शरीर रहेंगे और उसे तीसरा शरीर मिलेगा तो वह औदारिक मिलेगा। जो वैक्रियिक शरीर वाले होंगे उनके लिए वैक्रियिक शरीर हो गया। कभी-कभी ऋद्धि से भी वैक्रियिक की प्राप्ति हो जाती है। ऋद्धि से ही आहारक शरीर की प्राप्ति हो जाती है। इस तरह से औदारिक, वैक्रियिक और आहारक में से औदारिक व आहारक शरीर एक साथ हो सकते है। इस सिद्धान्त में एक और बात भी आती है-वैक्रियिक और आहारक दोनों एक साथ नहीं होते हैं। वैक्रियिक शरीर होगा तो आहारक शरीर नहीं होगा और आहारक शरीर होगा तो वैक्रियिक शरीर नहीं होगा। अर्थात् एक साथ अधिक से अधिक चार शरीर आत्मा के पास हो सकते हैं। कार्मण शरीर की विशेषताओं के बारे में बताते हए आचार्य कहते हैं निरुपभोगमन्त्यम् । 44|| अर्थ-अन्त का कार्मण शरीर उपभोग रहित है। अन्त्यम् अर्थात् अन्त का कार्मण शरीर उपभोग से रहित है। उपभोग का अर्थ है कि हम उसे अपनी इन्द्रिय का विषय नहीं बना सकते हैं। अर्थात् कार्मण शरीर कभी भी इन्द्रियों के द्वारा देखा नहीं जा सकता है। जब कर्म को ही नहीं देख सकते तो उसमें बैठी हुई आत्मा को कैसे देख सकते हैं?विग्रहगति में भी भावेन्द्रिय होती है द्रव्येन्द्रिय नहीं, इससे उपभोग नहीं होता। 75

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