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जीव-विज्ञान
सूत्र को नहीं जानता। इस सूत्र पर उसको विश्वास हो जाए तो फिर किसी प्रैक्टिकल को करने की जरूरत ही नहीं है।
एक बार किसी वैज्ञानिक ने एक ऐसा ही प्रैक्टिकल किया था। आत्मा जाती कहाँ है?उसका वजन कितना होता है? उसने जिस व्यक्ति की मृत्यु होने वाली थी उसका Weight कर लिया और जब उसकी मृत्यु हो गई तब उसका Weight कर लिया। फिर जो Weight loss हुआ उसके लिए उन्होंने कह दिया That is the weight of soul. और उसका वजन 20 ग्राम बताया। लोग ऐसी-ऐसी बेवकूफियां करते रहते हैं। जब तक हम आत्मा के इन शरीरों के विज्ञान को नहीं समझेंगे तब तक हम ऐसे ही कार्य करते रहेंगे। जिन्हें इन सूत्रों पर विश्वास हो गया उन्हें इस प्रकार के प्रैक्टीकल की कोई आवश्यकता नहीं है।
तैजस और कार्मण शरीर के विषय में आचार्य कहते हैं
अनादि-सम्बन्धे च||41||
अर्थ-तैजस और कार्मण शरीर आत्मा के साथ अनादि से सम्बन्ध रखने वाले हैं।
आचार्य कहते हैं इन दोनों ही शरीरों का आत्मा से अनादि से सम्बन्ध है। जब से यह आत्मा है तभी से यह कार्मण और तैजस शरीर है। इनका आत्मा के साथ कोई प्रारम्भिक बिन्दु नहीं है। अनादि का अर्थ है-Begning less time अनादि काल से आत्मा के साथ ये दोनों शरीर जुड़े हुए हैं। यहाँ पर, 'च' से तात्पर्य अनादि भी है और सादी भी है। क्योंकि अनादि तो यह कर्म परम्परा की अपेक्षा से चल रहा है और सादी से तात्पर्य है जो नए-नए कर्म हम अपनी आत्मा से जोड़ते रहते हैं उसकी अपेक्षा से इसे सादी भी समझना। पुराना भी चल रहा है और नया-नया भी उसमें जुड़ता चला जा रहा है। इसी को कहते हैं कि सादी सम्बन्ध भी है और कथंचित् अनादि सम्बन्ध भी है।
आगे सूत्र में आचार्य बताते हैं
सर्वस्य ।। 42|| अर्थ-ये दोनों शरीर समस्त संसारी जीवों के होते हैं।
आचार्य कहते हैं ये दोनों शरीर सभी संसारी जीवों के होते हैं।
एक साथ एक जीव के कितने शरीर
तदादीनि भाज्यानि युगपदेकस्मिन्नाचतुर्दाः ।। 43 ।। अर्थ-तैजस, कार्मण शरीर को आदि लेकर एक साथ एक जीव के चार शरीर तक विभक्त कर लेना
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