Book Title: Jeev Vigyan
Author(s): Pranamyasagar
Publisher: Akalankdev Vidya Sodhalay Samiti

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Page 72
________________ जीव-विज्ञान होगी। सूक्ष्म होने से तात्पर्य हल्का हो जाना। इस तरह से भी शरीर बनते हैं जिसके माध्यम से यह शरीर हमें दिखाई नहीं देते लेकिन उनमें परमाणु और अधिक होते चले जाते हैं। परमाणुओं की संख्या अधिक होगी लेकिन उनका आकार इत्यादि सूक्ष्म हो जाएगा। औदारिक शरीर से वैक्रियिक शरीर सूक्ष्म हो गया लेकिन परमाणुओं की संख्या असंख्यात गुणा अधिक हो गई। वैक्रियिक शरीर से आहारक शरीर और अधिक सूक्ष्म हो गया लेकिन उसमें परमाणुओं की संख्या और असंख्यात गुणा अधिक हो गई। एक लड्डू होता है जिसे राजगिर का लड्डू कहते हैं। वह लड्डू बहुत मोटा और बड़ा होता है। दिखने में तो वह बहुत बड़ा होता है लेकिन उसमें बिल्कुल भी भारीपन नहीं होता है। वह बहुत हल्का होता है। देखने में तो इतना बड़ा लगता है और जब उसे खाओगे तो पता भी नहीं लगेगा कब खतम हो गया। दूसरा मोतीचूर का लड्डू होता हैं जो विशेष घी बेसन इत्यादि से बनता हैं। देखने में तो छोटा लगता है लेकिन अगर इस लड़डू को उस राजगिरि के लड्डू के आधे बराबर भी खालोगे तो आपका पेट भर जाएगा। उसमें परमाणु उससे ज्यादा है लेकिन देखने में छोटा लग रहा है। एक लड्डू खोए का होता है वह उससे भी छोटा होता है लेकिन उसके अंदर की जो Intensity होती है वह उससे ज्यादा होगी। आप उस छोटे आकार के लड्डू को खा लोगे तो भी आपका पेट भर जाएगा। परमाणुओं की संख्या बढ़ती जा रही है, घनत्व उनका बढ़ता जा रहा है लेकिन वे आकार में छोटे हैं। इसी तरह से आहारक, वैक्रियिक और औदारिक शरीर के विषय में समझना। लेकिन इनमें जो असंख्यात गुणे बढ़ने का जो क्रम हैं-'प्राक्तैजसात् अर्थात् तैजस शरीर से पहले-पहले तक। 'प्राक' शब्द अगर आ जाए तो वह उसकी boundary बन जाती है उसे छना नहीं उससे पहले-पहले ही लेना। आहारक शरीर से तैजस शरीर में आप असंख्यात गुणे नहीं करना। तैजस शरीर से पहले-पहले के ही शरीर में असंख्यात गुणे का यह क्रम बनाना। आगे के शरीर में क्या करना है तो आचार्य तैजस, कार्मण शरीर के प्रदेश के विषय में कहते हैं अनन्तगुणे परे।। 39 ।। अर्थ-शेष दो शरीर अनन्तगूणे प्रदेश वाले हैं अर्थात आहारक शरीर से अनन्त गुणे प्रदेश तैजस शरीर में और तैजस शरीर से अनन्त गुणे प्रदेश कार्मण शरीर में है। ‘परे' का अर्थ है बाद के। जो बाद के दो शरीर हैं तैजस शरीर और कार्मण शरीर, इन दोनों ही शरीरों में अनन्त गुणा परमाणुओं का प्रदेश बढ़ जाता है। अर्थात् आहारक शरीर से तैजस शरीर के परमाणु अनन्त गुणे होंगे और तैजस शरीर से भी कार्मण शरीर के अन्दर रहने वाले परमाणु अनन्त गुणे होते हैं । अर्थात् कार्मण शरीर में सबसे ज्यादा प्रबलता होती है। बहुत ज्यादा घनत्व होता है। जो अपनी आत्मा को जकड़े हुए हैं। -72

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