Book Title: Jeev Vigyan
Author(s): Pranamyasagar
Publisher: Akalankdev Vidya Sodhalay Samiti

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Page 70
________________ जीव-विज्ञान मिलती है। यदि आपके फेंफड़ों की पम्पिंग कम हो जाए, तैजस शरीर बिल्कुल Discharge हो जाए तो डॉ. भी किसी भी प्रकार के तरीकों से उसको चार्ज नहीं कर पाएगा। वह डॉ. उतना ही कर पाएगा जितना आपके अंदर खींचने की क्षमता है। इसलिए जब सर्जिकल डॉ. फेल हो जाते हैं तब ये healing system काम आते हैं। जिसे कहते हैं अपने शरीर को heal करना। अपने शरीर के अंदर स्वयं अपनी ऊर्जा उत्पन्न करना । उस एनर्जी से आप अपने अंदर के रोगों को दूर करेंगे तो वह सबसे अधिक जड़ मूल से रोग दूर होंगे। बाकी के दो बाहरी उपचार हैं जो केवल ऊपर तक ही सहायक होते हैं। हमारे अंदर ऐसे कई रोग है जिन्हें आप अपने माध्यम से ठीक कर सकते हैं। कैंसर जैसे रोग की healing भी इस तैजस शरीर के charging के साथ हो सकती है। आप थाइराइड जैसी बीमारी भी ध्यान के माध्यम से ठीक कर सकते हो जब आप ध्यान लगाओगे तो यह बीमारी जड़मूल से समाप्त हो जाएंगी। आपकी आँख की बीमारियाँ, कान की बीमारियाँ, दिमाग की बीमारियाँ,आदि सभी बीमारियाँ,आप अपने अंदर healing करके ध्यान के माध्यम से इस तैजस शरीर को recharge करके करोगे तो आप भीतर से सही होते चले जाओगे। आपके अंदर विश्वास नहीं है और आपके अंदर स्वतः ठीक होने की भावना नहीं रहती है। आप यही चाहते हैं कि आपको दूसरा ठीक कर दे। आप डॉक्टरों पर निर्भर हो जाते हैं, दवाइयों के आदी हो जाते हैं जिसके कारण से हमारा स्वास्थ्य बिगड़ता चला जाता है। प्रत्येक बीमारी का इलाज ध्यान के माध्यम से हो सकता है। ये सभी ध्यान मुनिश्री द्वारा रचित पुस्तक 'अहम् योग ध्यान' में है; इन सभी ध्यानों का विस्तृत विवेचन इस पुस्तक में किया गया है। इन ध्यानों को करने के माध्यम से आप लम्बे समय तक स्वस्थ रह सकेंगे और डॉक्टरों की दवाइयों से भी आप स्वयं को बचा सकोगे। आज प्रत्येक व्यक्ति के दिमाग में यह सोच बनी रहती है-'क्या करना है बीमार पड़ेंगे तो दवाई खा लेंगे। इसी कारण से बीमारियां जड़मूल से सही नहीं होती है। कहने का तात्पर्य है यह तैजस शरीर हमारे लिए बहुत सहायक है। यह हमारे लिए बहुत अच्छा काम करने वाला है। इस शरीर को आप ध्यान के माध्यम से चार्ज कर सकते हैं। तैजस शरीर के साथ ही यह कार्मण शरीर जुड़ा रहता है। यह कार्मण शरीर हमारे अंदर कर्म परमाणुओं को इकट्ठा करता रहता है। हम जैसे-जैसे भाव करते हैं उन भावों के माध्यम से भी ये कर्म परमाणु बंधते चले जाते हैं। यदि आप जाग्रत होंगे तो कर्म कम बंधेगे और आप बेहोशी में है तो आपके कर्म ज्यादा बंधेगे। बेहोशी से तात्पर्य शयन करना नहीं है इसका तात्पर्य है कि आपको अपनी आत्मा का विचार नहीं, आपको अपने मन का विचार नहीं और आपको अपने भावात्मक परिणतियों का विचार नहीं है। इस बेहोशी में आप जब तक रहोगे तब तक आपके कर्मों का बंध बहुत अधिक होगा। ध्यान के माध्यम से जब यह जाग्रति आती है तो कर्म बंध पर भी प्रभाव पड़ता है और अच्छे पुण्य कर्मों का बंध होने लगता है। पुण्य-फलों का मतलब है कि अपने अंदर ऐसे सकारात्मक कर्मों का बंध करना जिसके उदय में आने पर, जिसके पुनः फल देने पर अपने आप सकारात्मक वातावरण बनेगा और बाहर भी अपने आस-पास एक सकारात्मक वातावरण बनने लग जाएगा। ये 70

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