Book Title: Jeev Vigyan
Author(s): Pranamyasagar
Publisher: Akalankdev Vidya Sodhalay Samiti

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Page 68
________________ जीव-विज्ञान महान् प्रयोजन जिससे सिद्ध हो जाए। वह महान् प्रयोजन क्या है? आचार्य बताते हैं मोक्ष को प्राप्त करने का महान् प्रयोजन, केवलज्ञान को प्राप्त करने का महान् प्रयोजन जिससे सिद्ध होगा वह शरीर औदारिक शरीर कहलाएगा। ऐसे इस औदारिक शरीर के बहुत लाभ भी हैं और इस औदारिक शरीर की स्थूलता अधिक होने के कारण इसको क्रम में सर्वप्रथम रखा गया है। दूसरे शरीर का नाम वैक्रियिक शरीर है। जो शरीर विक्रिया के माध्यम से बनते हैं उसे वैक्रियिक शरीर कहते हैं। वैक्रियिक शरीर का अभिप्राय है कि ऐसे शरीर की प्राप्ति हो जाना जिसके माध्यम से हम उस शरीर के और भी कई शरीर बना सकें। हम इससे छोटे-बड़े, लम्बे-चौड़े, पृथक्-अपृथक् सभी तरह के शरीर बना सकते हैं। वैक्रियिक शरीर का अर्थ है विक्रिया करने की क्षमता आ जाना। यह विक्रिया करने की क्षमता देव और नारकियों में स्वभाव से ही मिलती है। देवगति और नरकगति में जो जीव जाएगा उसका शरीर वैक्रियिक शरीर ही होगा। चाहे कोई भी देव या नारकी कितना भी बड़ा या छोटा हो, सभी का शरीर वैक्रियिक शरीर ही होगा। उनका शरीर कभी औदारिक नहीं होगा और अपना (मनुष्य) शरीर कभी वैक्रियिक नहीं होगा। मनुष्यों और देवों, नारकियों के शरीर में गुणों की अपेक्षा बहुत अंतर होता है। वैक्रियिक शरीर के बहुत गुण होते हैं। वैक्रियिक शरीर में कभी पसीना नहीं आता, सप्त धातुओं से रहित होता है, हाड़-माँस-मज्जा उसमें नहीं होती। इस शरीर में थकान उत्पन्न नहीं होती, उनके नख-केश नहीं बढ़ते हैं। ये सभी वैक्रियिक शरीर के विशेष गुण हैं। यह वैक्रियिक शरीर देवों को प्राप्त होता है। चाहे वह भवनवासी हो, व्यंतर हो, ज्योतिषी हो या वैमानिक, कोई भी देव हो उसका शरीर वैक्रियिक शरीर ही होगा। इस तरह से देवों और नारकियों का शरीर वैक्रियिक हुआ और मनुष्य, तिर्यंच, विकलेन्द्रिय जीवों का शरीर औदारिक शरीर होगा। तीसरा आहारक शरीर होता है। यह एक विशेष शरीर होता है जो विशेष प्रकार के तप और ऋद्धि से मुनि महाराज को प्राप्त होता है। यह ऋद्धिधारी मुनीश्वरों को प्राप्त होता है। इस शरीर के माध्यम से वह अपने अंदर उत्पन्न होने वाली जिज्ञासाओं का समाधान कर लेते हैं। वह शरीर इसी औदारिक शरीर से बाहर निकलता है, पुनः वापिस आकर इसी शरीर में समा जाता है। इसकी शुभता आदि के बारे में स्वयं आचार्य आगे के सूत्र में बताएंगे। चौथे शरीर का नाम तैजस शरीर है। यह तैजस शरीर बहुत काम का शरीर है। इसके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। यह तैजस शरीर सभी संसारी आत्माओं के साथ जुड़ा रहता है। इसको आप एक Luminous body समझ सकते हो। जो अपने शरीर में कान्ति प्रदान करता है। प्रत्येक प्राणी के शरीर में एक लाइट है, एक एनर्जी है। जो कुछ भी हमें एनर्जी मिलती है वह इसी तैजस शरीर से मिलती है। यह एक तरह से हमारे भीतर का एक Electric System है। इस शरीर का हमारी आत्मा से घनिष्ठ सम्बन्ध हैं। औदारिक शरीर का हमारी आत्मा से घनिष्ठ सम्बन्ध नहीं है क्योंकि वह स्थूल-थूल है। लेकिन इस तैजस शरीर के प्रदेश एवं आत्मा के प्रदेश दोनों एक दूसरे से बंधे हुए हैं। जैसे-कार्मण शरीर के परमाणु हमारी आत्मा से बंधे हुए रहते हैं वैसे 68

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