Book Title: Jeev Vigyan
Author(s): Pranamyasagar
Publisher: Akalankdev Vidya Sodhalay Samiti

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Page 67
________________ जीव-विज्ञान समाधान-दूसरी गति में जाते समय जीव का आकार पूर्व आकार का ही होता है। जैसे आपको देवगति में जाना है तो आपकी आत्मा के प्रदेश उस विग्रहगति में मनुष्य के आकार के ही रहेंगे। शंका- क्या केवली भगवान इस चीज को देख सकते हैं ? समाधान-हाँ ! केवली भगवान ने देखा तभी तो बताया है। इसी को आनुपूर्वी नामकर्म कहते हैं। उस आनुपूर्वी नामकर्म के कारण से ही यह आकार बनता है। यह आपको आठवें अध्याय में पढ़ने को मिलेगा। आगे के सूत्र में आचार्य बताते हैं कि इस जीव के पास कितने शरीर होते हैं? प्रत्येक प्राणी यह जानता है इस जीव का मनुष्य गति में जन्म हुआ तो मनुष्य का शरीर मिल गया, तिर्यंच गति में जन्म हुआ तो तिर्यंच का शरीर मिल गया। चारों गतियों के जीव अपने-अपने कर्म के अनुसार अलग-अलग शरीर को धारण करते हैं। हमारे शरीर में भी आत्मा से जुड़े हुए और शरीर होते हैं उनके बारे में जो आपको जानकारी मिलेगी वह केवल जैन दर्शन से और इस तत्त्वार्थसूत्र के द्वितीय अध्याय से मिलेगी। आचार्य शरीर के नाम व भेद बताते हैं औदारिकवैक्रियिकाहारकतैजसकार्मणानि शरीराणि ।। 36 || अर्थ-औदारिक (मनुष्य, तिर्यंच का स्थूल शरीर) वैक्रियिक (नाना प्रकार के शरीर बनाने में समर्थ) आहारक (छट्टे गुणस्थानवर्ती मुनि के मस्तक से एक हाथ का पुतला संशय निवारणार्थ निकलता है, उसे आहारक शरीर कहते हैं) तैजस (तेज युक्त शरीर) कार्मण (आठ कर्मों का समूह) ये पाँच प्रकार के शरीर होते हैं। आचार्य कहते हैं-पाँच प्रकार के शरीर होते हैं, जो आत्मा धारण करता है। पहला औदारिक शरीर, दूसरा वैक्रियिक शरीर, तीसरा आहारक शरीर, चौथा तैजस शरीर और पाँचवां कार्मण शरीर होता है। ये पाँच प्रकार के शरीर होते है। इन पाँचों प्रकार के शरीरों का जो क्रम दिया है वह सूक्ष्मता की अपेक्षा से दिया है। सबसे स्थूल औदारिक शरीर होता है जो हमें देखने में आता है। इस औदारिक शरीर को मनुष्य और तिर्यंच धारण करते हैं। इस औदारिक का नाम भी इसीलिए पड़ा क्योंकि उदार का मतलब होता है थूल (स्थूल) और उदार शब्द से ही औदारिक बना है। औदारिक का अर्थ होता है जो स्थूल युक्त हो या फैला हुआ हो जो लोगों के देखने में जा जाए, सभी के ग्रहण करने में आ जाए ऐसे शरीर का नाम औदारिक शरीर होता है। “आचार्य श्री वीरसेन महाराज जी ने इसका एक और अर्थ बहुत अच्छा बताया है जिसका वर्णन उन्होंने “धवला ग्रन्थ” में किया है। वे कहते हैं कि उदार प्रयोजन जिससे सिद्ध होता है उसका नाम औदारिक होता है। उदार का अर्थ है बहुत बड़ा अर्थात् 67

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