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जीव-विज्ञान
पुनः लिखने की जरूरत नहीं पड़ी। इसलिए वनस्पति जिनके अन्त में है वह एकेन्द्रिय वाले जीव हैं। आगे के सूत्र में दो इन्द्रिय आदि के स्वामी बताते हैं
कृमि- पिपीलिका-भ्रमर-मनुष्यादीनामेकैक-वृद्धानि।। 23 ।।
संसारी जीवों के भेद
त्रस (त्रस नामकर्म का उदय)
स्थावर (स्थावर नामकर्म का उदय)
द्वीन्द्रिय जैसे-(लट)
त्रीन्द्रिय (चींटी)
चतुरिन्द्रिय पंचेन्द्रिय (भ्रमर) (मनुष्य)
एकेन्द्रिय
पृथिवी
जल
अग्नि
वायु
वनस्पति
साधारण
(निगोदिया) (एक शरीर अनेक जीव स्वामी)
प्रत्येक (एक शरीर एक स्वामी)
सप्रतिष्ठित (जिसके आश्रय से अनेक निगोदिया शरीर हों)
अप्रतिष्ठित (जिसके आश्रय से कोई निगोदिया न हो)
| पृथिवी स्थावर के भेद |
पृथिवी पृथिवी सामान्य
पृथिवी जीव विग्रहगति का जीव जो पृथिवी में जन्म लेने जा रहा है
पृथिवीकायिक पृथिवीरूप शरीर के सम्बन्ध से युक्त जीव
पृथिवीकाय पृथिवीकायिक जीव
द्वारा छोड़ा गया शरीर
अर्थ-लट आदि, चींटी आदि, भौंरा आदि, मनुष्य आदि के क्रम से एक-एक इन्द्रिय बढ़ती हुई हैं। अर्थात् लट आदि के प्रारम्भ की दो, चींटी आदि के तीन, भौंरा आदि के चार और मनुष्य आदि के पाँच इन्द्रियाँ होती है।
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