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अनुश्रेणि गतिः । । 26 ।।
अर्थ-जीव और पुद्गल का गमनश्रेणी के अनुसार होता है।
लोक के मध्यभाग से ऊपर, नीचे तथा तिर्यक दिशा में क्रम से सम्बन्धित (रचना) को प्राप्त हुए आकाश प्रदेशों की पंक्ति को श्रेणि कहते हैं।
जन्म स्थान
ऋजु गति
मरण स्थान
मरण/स्थान
जन्म स्थान
जन्म स्थान
मूत्रिका गति
वीगलिका गति
मरण स्थान
मरण स्थान
जन्म स्थान
तीन मोड़ और चार समय का विशेष जानने के लिए उपर्युक्त मानचित्र का देखिए ।
जीव-विज्ञान
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अनुश्रेणी
गति
आकाश के प्रदेशों की
आचार्य कहते हैं जब भी यह जीवात्मा एक शरीर को छोड़कर दूसरे शरीर के लिए गमन करेगा तब इस विग्रहगति में वह श्रेणी के अनुसार ही गति करेगा । अनुश्रेणि का अर्थ है-श्रेणी के अनुरूप जो भी श्रेणियां बनी हुई हैं उसी के अनुसार उसकी गति होगी । यही कहलाती है अनुश्रेणि गति । प्रश्न उठता है वह श्रेणी कैसी बनी हुई है? यह श्रेणियां आपको दिखाई नहीं देंगी। आकाश के सभी प्रदेशों में वह श्रेणियां बनी हुई हैं। जैसे आप किसी चटाई को देखते हैं उस चटाई में दो प्रकार
दक्षिण
-
उत्तर
पूर्व + पश्चिम की लाइनें होती है। खड़ी लाइनें और आड़ी लाइनें होती हैं । उसी की तरह ये पूरी की पूरी श्रेणियां लम्बाई में और चौड़ाई में पूरे आकाश के प्रदेशों में बनी हुई हैं। जब भी कोई जीव अपने कर्मों के साथ गमन करता है तो वह उस श्रेणी के अनुसार ही गति करेगा। आकाश में ये श्रेणियाँ चटाई के तानों बानों की तरह होती हैं। कुछ श्रेणियाँ Horizontal (सीधी लाइन में होती है और कुछ श्रेणियाँ Vertical (खड़ी) लाइन में होती हैं।
पंक्ति के अनुसार गमन
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मुक्त जीव
संसारी जीव
सिर्फ ऋजुगति
चारों प्रकार
की
गति
जिंदगी में आप भले ही लाइन से न चलो अर्थात् लाइन पर न चलो लेकिन मरने के बाद सब लाइन पर चलते हैं। मरने के बाद प्रत्येक प्राणी की गति इन कर्मों के अनुसार ही चलती है। यह प्रकृति का नियम है। एक लाइन में अनन्त - अनन्त जीव भी फँसे होंगे। 343 घन प्रमाण जो तीन लोक का घनफल है उसमें जो चौदह राजू ऊँचाई को लिए हुए लोक की ऊँचाई है उनमें जितनी भी श्रेणियाँ बनी हुई हैं उन सब श्रेणियों में जीवों का सात-सात राजू की लम्बी-चौड़ी पंक्ति में गमन प्रत्येक समय चल रहा है। अनन्त - अनन्त जीवों का हर क्षण जन्म और मरण हो रहा है और प्रति क्षण इन श्रेणियों में इनका गमन हो रहा है। बीच में जो गति आती है उस विग्रहगति में कितना समय