Book Title: Jeev Vigyan
Author(s): Pranamyasagar
Publisher: Akalankdev Vidya Sodhalay Samiti

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Page 62
________________ जीव-विज्ञान को बदल लेना कि हमारे दादा की, दादी की आत्मा भटक भटककर हमें परेशान करती है। कुछ भी हो जाए चाहे एक्सीडेंट हो जाए, भूकम्प आ जाए या बाढ़ में बह जाए, चाहे कुछ भी हो जाए, आत्मा ने जैसे ही इस शरीर को छोड़ा अगले ही समय वह दूसरा जन्म ले लेता है। हाँ! ऐसा जरूर हो सकता है कि वह व्यन्तर देव बन गया और देवगति में उसका जन्म हो गया तो व्यन्तर बनकर वह आपको परेशान कर सकता है। लेकिन यह बात अलग है, आप कम से कम इतना श्रद्धान तो करो कि हो सकता है हमारे दादा जी व्यन्तर देव बन गए हों। यह तो कोई नहीं कहेगा, क्योंकि ऐसा कहने से हमारी इज्जत कम हो जाएगी। वह व्यन्तर बन जाएगा या भूत जाति का देव बन जाएगा और देव बनकर आपको परेशान करने लग जाएगा। जो इच्छा उसकी आपके साथ रहकर पूरी नहीं हुई वह उनका बदला लेने के लिए आ सकता है। लेकिन आप यह मत समझना कि उसकी आत्मा भटक रही है। वह आपको किसी भी प्रकार की काया दिखा सकता है, आपको डरा सकता है। वह आपको किसी भी रूप में परेशान कर रहा हो तो आप यही समझें कि वह व्यंतर जाति के देव बन गए हैं। उनकी अपनी उम्र है, उन देवों की अच्छी आयु है, अच्छा शरीर होता है। जो रूप वह आपको दिखाएंगे, डराएंगे वह केवल आपको परेशान करने के लिए बनाएंगे। उनका स्वयं का शरीर तो बहुत सुंदर होता है जिससे वह अपनी देवांगनाओं के साथ आनन्द लेते हैं। इस तरह के सही ज्ञान से हम यह जान लें कि कोई भी आत्मा तीन समय से अधिक बीच की गति में रहता ही नहीं है। दो समय या तीन समय बाद यह नियम से आहारक हो जाता है। किसी न किसी शरीर को ग्रहण करके आहार वर्गणाओं को ग्रहण करने लग जाता है। आगे के सूत्र में आचार्य जन्म के भेद कहते हैं सम्मूर्छन–गर्भोपपादा जन्म।। 31 ।। अर्थ-सम्मर्छन, गर्भ और उपपाद के भेद से जन्म तीन प्रकार का होता है। आचार्य कहते है-जन्म तीन प्रकार के होते हैं। पिछले सूत्र में बताया था कि एक गति से दूसरी गति में यह आत्मा चली जाती है। इस सूत्र में बताया जा रहा है-किस गति के जीवों का जन्म किस तरह का होता है?देवों के जन्म अलग होते हैं, मनुष्यों के जन्म अलग होते हैं और तिर्यंचों के जन्म अलग होते हैं। ___ पहला 'सम्मूर्छन जन्म'-सम्मूर्छन जन्म जिन जीवों का होता है वह जीव तिर्यंच गति के जीव होते हैं। सम्मूर्छन जन्म जिन जीवों का होता है, उनकी आत्मा कहीं भी पहुँचकर उस स्थान सम्बन्धी वर्गणाओं को ग्रहण करके अपना शरीर बना लेती है। पुद्गल वर्गणाएं सम्पूर्ण लोक में फैली हुई हैं। उनको वह वहीं जाकर ग्रहण कर लेती है उसका नाम है सम्मूर्छन जन्म । अर्थात् चारों ओर से पुद्गल वर्गणाओं को ग्रहण कर लेना, इसी का नाम सम्मूर्छन जन्म होता है। इस जन्म में किसी के लिए किसी भी संयोग की कोई आवश्यकता नहीं होती है। 62

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