Book Title: Jeev Vigyan
Author(s): Pranamyasagar
Publisher: Akalankdev Vidya Sodhalay Samiti

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Page 50
________________ जीव-विज्ञान है-रस को ही ग्रहण करना लेकिन मन का कोई विषय नियत नहीं है। इस कारण इसको अनिन्द्रिय कहा गया है। यह ईषत् इन्द्रिय होते हुए भी, थोड़ी इन्द्रिय है लेकिन इन्द्रियों जैसा काम नहीं करता है। कुछ लक्षण इसमें इन्द्रियों के हैं और कुछ इन्द्रियों के नहीं हैं। इन्द्रियों के लक्षण क्या है? जैसे द्रव्य-इन्द्रिय की रचना होती है वैसे ही मन-इन्द्रिय की भी रचना होती है। इसलिए यह इन्द्रिय भी कहलाता है। लेकिन इन्द्रियों की तरह इसके विषय नियत नहीं है, स्थान नियत नहीं है इसलिए यह अनिन्द्रिय भी कहलाता है। ऐसी दोनों प्रकार की परिणतियाँ होने पर यह क्या करता है? मन का विषय है-श्रुत। श्रुत अर्थात् श्रुतज्ञान । जो हमारी आत्मा में श्रुतज्ञान का क्षयोपशम होता है वह सारा का सारा क्षयोपशम मन के माध्यम से पंचेन्द्रिय जीवों में कार्य करता है। अन्य जीवों में श्रुतज्ञान का क्षयोपशम होगा तो वह मन के बिना कार्य करेगा। लेकिन जो मन वाले हैं उनके लिए यह नियम हो जाता है कि उनके अंदर श्रुतज्ञान का क्षयोपशम मन के माध्यम से ही काम करेगा। इस अनिन्द्रिय का जो मुख्य विषय है वह श्रुतज्ञान का ही मुख्य विषय है। मतिज्ञान का भी है लेकिन उसमें मुख्यता श्रुतज्ञान की ही है। सुनकर जो हमें उपलब्ध होता है वह भी श्रुत कहलाता है। श्रुत का अर्थ है-सुनना। सुन करके जो हम मन के माध्यम से अनेक प्रकार का ज्ञान अपने अंदर अर्जित करते हैं, वह श्रृतज्ञान इसी मन का कार्य होता है। जैसे-किसी ने कहा-'इस कमरे के बाहर जाओ वहाँ पर जाकर एक घड़ा मिलेगा। वह उठाकर ले आना। आपने इतना सुना-'घड़े को उठाकर लाना है। आप वहाँ गए, वहाँ जाकर आपने देखा वहाँ पर बहुत सारे घड़े रखे हुए हैं। आपने उनमें से एक घड़ा उठा लिया। कौन सा घड़ा उठाया? यह विचार जो आपके अंदर आया, वह आपके मन के माध्यम से आपके अंदर आया। किसलिए उठाना है? क्योंकि हम से कहा गया है वहाँ से घड़ा उठाकर लाओ? तो आपके मन में यह विचार आएगा कि हमसे यह घड़ा लाने के लिए इसलिए कहा गया होगा जिससे कि इस घड़े का उपयोग यहाँ पर रहने वाले लोग कर सकें। यह विचार जो आपके मन में आया वह सारा का सारा श्रुतज्ञान है। कुछ सुनने के बाद अपने आप अन्य पदार्थ की ओर हमारे विचारों का चले जाना यह मन का विषय होता है। इसलिए इस तत्त्वार्थसूत्र को जो पढ़ रहे हैं उन सभी का श्रुतज्ञान अलग-अलग काम करता है। यदि एक डॉक्टर होगा तो इन्हीं सूत्रों को सुनकर उसका दिमाग डॉक्टरी की तरफ जाएगा। एक इंजीनियर होगा उसका दिमाग इंजीनियरिंग की ओर ही जाएगा। एक बिजनेसमैन भी होगा तो उसका दिमाग उसमें जाएगा और कहेगा-हाँ, मैं भी अपने श्रुत के माध्यम से कुछ सोचकर कुछ और करने की इच्छा कर रहा हूँ। यह भी हमारा श्रुतज्ञान है। मैंने सोचा कुछ और था और हमारे सोचने के माध्यम से ऐसे विचार आते चले गए और मैं यह सब करता चला गया। यह सब किसकी परिणति है?तो यह सब श्रुतज्ञान की परिणति है। यह सारा का सारा श्रुतज्ञान सभी जीवों में अलग-अलग उनके मतिज्ञान के अनुरूप भी कार्य करता रहता है। जैसा वे देखते हैं, पढ़ते हैं, सुनते हैं उनके पास में जिस तरह की बाहरी उपलब्धियाँ होती हैं उस उपलब्धि के अनुसार वह श्रुतज्ञान भी काम करता चला जाता है। मन के विचार भी उसी रूप में आते चले जाते हैं। एक योगी होगा तो इन सूत्रों को 50

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