Book Title: Jeev Vigyan
Author(s): Pranamyasagar
Publisher: Akalankdev Vidya Sodhalay Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 13
________________ जीव-विज्ञान सिद्ध भगवान में ही मिलेंगे। इससे पहले किसी को भी क्षायिक आदि की प्राप्ति क्षायिक ज्ञान नहीं होती है। ये क्षायिक-भाव कहाँ (ज्ञानावरण के क्षय से) उत्पन्न होंगे?केवलज्ञान के उत्पन्न होने पर ही होंगे। यहाँ ज्ञान को पहले लिखा गया है क्योंकि जहाँ केवलज्ञान हुआ तो क्षायिक सम्यक्त्व वहाँ दान, लाभ, भोग, उपभोग, वीर्य ये (दर्शन मोहनीय क्षायिक क्षायिक दर्शन स्वतः ही उसके पीछे आ जाएंगे। यदि के क्षय से) (दर्शनावरण क्षायिक चारित्र केवलज्ञान नहीं हुआ तो ये भी नहीं के क्षय से) भाव (चारित्र मोहनीय होंगे। कहने का तात्पर्य यह है यदि के क्षय से) क्षायिक-ज्ञान हो गया है तो बाकी के क्षायिक दान छ: भाव भी आ जाएंगे। क्षायिक लाभ क्षायिक भोग इसका दूसरा अर्थ इस तरह से क्षायिक उपभोग क्षायिक वीर्य भी निकलता है कि क्षायिक-सम्यग्दर्शन (अंतराय के और क्षायिक-चारित्र की तो यहाँ ज्ञान क्षय से) के साथ कोई व्याप्ति नहीं है लेकिन इस ज्ञान के साथ में ये भाव अवश्य रहेंगे तो इनकी व्याप्ति बन जाती है। इसलिए यहाँ पर विभक्ति तोड़कर इतने भावों को लिखा है। सूत्र में वीर्याणि पर्यन्त अर्थात् ये सात भाव हमेशा रहेंगे। अगर एक क्षायिक-ज्ञान उत्पन्न हो गया तो बाकी के छ: भाव उसमें अवश्य रहेंगे। ऐसा नहीं है कि क्षायिक-ज्ञान हो गया तो क्षायिक चारित्र भी रहेगा या क्षायिक चारित्र आ गया तो क्षायिक ज्ञान भी रहेगा यह नियामकता नहीं बनेगी लेकिन क्षायिक-ज्ञान के साथ में क्षायिक-सम्यक्त्व की नियामकता बन जाएगी। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि ये भाव तो केवल अरिहन्त और सिद्ध में अर्थात् 13वें और चौदहवें गुणस्थान में होते हैं क्योंकि अरिहन्त भगवान तेरहवें गुणस्थान में और अयोग केवली चौदहवें गुणस्थान में, सिद्ध भगवान गुणस्थानातीत होते हैं। इन सबमें क्षायिकभाव रहेंगे लेकिन क्षायिकसम्यग्दर्शन तो इन गुणस्थान से नीचे वाले जीव में भी होता है और क्षायिकचारित्र भी इन गुणस्थान से नीचे वाले जीवों में भी होता है। क्योंकि क्षायिकचारित्र तो क्षपकश्रेणी में होगा तो आठवें, नवमें, दसवें गुणस्थान के भावों में रहने वाले जो चारित्र होंगे वह कहलाएंगे क्षायिक चारित्र के भाव और क्षायिकसम्यग्दर्शन तो चौथे गुणस्थान में भी हो जाता है। अविरत सम्यग्दृष्टि एक गृहस्थ जीव भी हो सकता है। क्षायिक सम्यक्त्व के और क्षायिक चारित्र के भाव तो अरिहन्त से नीचे के गुणस्थानों में भी हैं लेकिन ये सारे के सारे भाव अरिहन्त आदि की प्राप्ति होने पर उन गुणस्थानों में ही मिलेंगे। इसलिए इन क्षायिक भावों में इन सात भावों का विभाजन अलग और दो भावों का विभाजन अलग किया गया है। यह भी हमें स्पष्ट हो जाता है। इस तरह से यह क्षायिकभाव नौ प्रकार के हुए। 13

Loading...

Page Navigation
1 ... 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88