Book Title: Jeev Vigyan
Author(s): Pranamyasagar
Publisher: Akalankdev Vidya Sodhalay Samiti

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Page 42
________________ जीव-विज्ञान जो अवगाहना है, उनकी जो क्षेत्र को घेरने की क्षमता है वह बहुत छोटी होती है। घनांगुल का असंख्यातवां भाग-इतनी छोटी उसकी अवगाहना है। उसको आप कभी पकड़ ही नहीं सकते हो। उनकी जो कुछ भी पकड़ है वह त्रस जीवों की ही है। शंका-पानी की एक बूंद में छत्तीस हजार चार सौ पचास जीव होते हैं। जब पानी को गर्म करते हैं, तो वे मर जाते हैं। तो हम भगवान का अभिषेक कैसे करते हैं? समाधान- पानी को आप गर्म करें अथवा न करें उनको तो मरना ही है। जल को प्रासुक करने से यह लाभ होगा कि 12 घंटे तक या चौबीस घंटे तक उसमें त्रस जीवों की उत्पत्ति नहीं होगी। यदि आपने ऐसा नहीं किया तो एकेन्द्रिय जीव के भाव के कारण उसमें त्रस जीवों की बहुत उत्पत्ति हो जाएगी जिससे त्रस जीवों के घात का आपको अधिक दोष लगेगा। जल को प्रासुक करने से त्रस जीवों की उत्पत्ति नहीं होगी। इससे आप और अधिक पाप से बच जाएंगे। इसी क्रम में त्रस जीवों का वर्णन करते हुए आचार्य इन्द्रियों की संख्या कहते हैं पंचेन्द्रियाणि ।।15।। अर्थ-इन्द्रियाँ पाँच होती है। → स्पर्शन इस सूत्र में आचार्य कहते हैं-इन्द्रियाँ पाँच होती है। आपने बचपन से ही सुना होगा कि रसना इन्द्रियाँ पाँच होती है। इस सूत्र के माध्यम से विशेष इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि अन्य घ्राण सम्प्रदाय के लोग इन्द्रियों की संख्या पाँच के अतिरिक्त और भी मानते हैं। शरीर की संख्या पाँच - चक्षु के अतिरिक्त और भी मानते हैं। शरीर के अन्दर जो वचन है, अंगोपांग पीठ आदि को भी इन्द्रियाँ मानते हैं। उन सबका निराकरण करने के लिए यहाँ लिखा है कि इन्द्रियाँ पाँच ही होती हैं। ऐसा क्यों कहा गया? आचार्य कहते हैं कि यहाँ पर उपयोग की मुख्यता है। आपको पहले ज्ञानोपयोग बताया गया था उस उपयोग के माध्यम से ही इन्द्रियों का कार्य होता है। उपयोग में पाँच ही इन्द्रियाँ आती हैं। पाँच इन्द्रिय-ज्ञान सम्बन्धी ही उपयोग होगा। अन्य जो हमारे शरीर में अंग-उपांग रहते हैं वे कार्य तो करते हैं लेकिन उपयोग जो होगा वह पाँच इन्द्रिय सम्बन्धी ही होगा। इसलिए उपयोग की मुख्यता में इन्द्रियाँ पाँच ही बनती हैं। अन्य सम्प्रदायों में कर्मेन्द्रियाँ मानी जाती है। जिनसे हम कर्म करते है उनको वे इन्द्रियाँ मानते हैं। लेकिन आचार्य कहते हैं-आत्मा में उपयोग की विवक्षा से जब देखते हैं तो ये पाँच ही इन्द्रियाँ सभी प्रकार के कर्म करने में तत्पर रहती हैं। क्योंकि हम जो भी कर्म करेंगे वह इन पाँच इन्द्रियों से इन्द्रियाँ कर्ण 42

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