Book Title: Jeev Vigyan
Author(s): Pranamyasagar
Publisher: Akalankdev Vidya Sodhalay Samiti

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Page 38
________________ जीव-विज्ञान आचार्य पुनः बताते हैं-संसारी जीव दो प्रकार के हैं। एक त्रस जीव और दूसरे स्थावर जीव । त्रस जीव किसे कहते हैं?'जो चलते फिरते हैं वे त्रस जीव हैं'-ऐसी परिभाषा मत बनाना, यह परिभाषा बाधित हो जाएगी। क्योंकि ऐसे भी बहुत से जीव हैं जो चल फिर नहीं रहे हैं लेकिन त्रस है। मान लो गर्भ में कोई बेटा है तो उसे आप त्रस कहोगे या स्थावर कहोगे। क्योंकि हमने यह परिभाषा बना दी जो चले फिरे वह त्रस जीव है। तो फिर वह क्या कहलाएगा? फिर तो वह स्थावर हो जाएगा। जबकि वह पंचेन्द्रिय है। इसलिए यह परिभाषा मत बनाना जो चले फिरे वह त्रस है और जो नहीं चले फिरे वह स्थावर है। इसकी परिभाषा आचार्यों ने इस प्रकार दी है-जो त्रसनामकर्म के उदय से दो इन्द्रियादि पर्यायों को प्राप्त कर लेता है वह त्रस जीव है और जो स्थावर नाम कर्म के उदय से एकेन्द्रियादि पर्याय को प्राप्त कर लेता है वह स्थावर जीव है। त्रस अपने आपमें एक नाम कर्म है। त्रस नामकर्म के उदय से दो इन्द्रिय आदि पर्यायों को प्राप्त कर लेना त्रस पर्याय कहलाती हैं। अब चाहे वह हिले डुले, चाहे न हिले-डुले वे त्रस ही कहलांएगे। तो ये जीव त्रस कहलाए बाकि के जो स्थावर नामकर्म के उदय से एक इन्द्रिय आदि पर्याय को प्राप्त करे वह स्थावर कहलाते हैं। ऐसे त्रस और स्थावर जीवों का विभाजन होने से संसारी जीव दो प्रकार के हो जाते हैं। अब इनमें भी त्रस को पहले रखा गया है और स्थावर बाद में है। यह भी इसलिए पहले लिखा गया है क्योंकि इनका मूल्य ज्यादा है। जिन्होंने अधिक इन्द्रियाँ प्राप्त कर ली हैं, जो बड़े हो गए हैं उनको पहले रखना होता है। इन अक्षरों और पदों को पहले रखने का भी एक बहुत बड़ा साइंस है। इन सूत्रों में प्रत्येक चीज का एक बहुत बड़ा विज्ञान छुपा हुआ है। इसका क्रम यह क्यों रखा? एक-एक शब्द एकवचन में क्यों?इन पदों में समास क्यों बनाया? प्रत्येक चीज के आचार्यों ने तर्क के साथ उत्तर दिये हैं। अगर आप अच्छी तरह से तत्त्वार्थसूत्र को समझना चाहते हो तो आचार्य पूज्यपाद महाराज द्वारा लिखित एक ग्रन्थ है सर्वार्थसिद्धि उसको पढ़ना चाहिए। उनके द्वारा इस तत्त्वार्थसूत्र की पहली टीका की गई थी। उसी व्याख्या का अनुसरण बाद के आचार्यों द्वारा किया गया है। इस सर्वार्थसिद्धि से पहले कोई भी टीका ग्रन्थ उपलब्ध नहीं था। इन सूत्रों के मर्म भी इन्हीं आचार्य जी ने समझाए। आचार्य श्री पूज्यपाद स्वामी द्वारा ही इष्टोपदेश, सर्वार्थसिद्धि और समाधितन्त्र आदि ग्रन्थ लिखे गए हैं। इस सूत्र में यह कहा गया है कि दो प्रकार के जीवों से अर्थात् त्रस और स्थावर से ही यह संसार भरा हुआ है। अब इनमें कौन से त्रस जीव है और कौन से स्थावर जीव हैं?यह आगे बताया जायेगा। आचार्य स्थावर जीवों के भेद कहते हैं पृथिव्यप्तेजोवायुवनस्पतयः स्थावराः ।। 13।। अर्थ-पृथ्वीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक ये पाँच प्रकार के स्थावर जीव हैं। 38

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