Book Title: Jeev Vigyan
Author(s): Pranamyasagar
Publisher: Akalankdev Vidya Sodhalay Samiti

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Page 20
________________ जीव-विज्ञान पड़ा हुआ है, अनन्त ज्ञान है लेकिन वह कर्मों के द्वारा दबा हुआ है। उन कर्मों में थोड़ा-थोड़ा-सा जब क्षयोपशमभाव आता है तो हमारे अंदर वह ज्ञान प्रकट होता है, ये क्षयोपशमभाव ऐसे ही होते हैं। इन क्षयोपशम भावों की यह विशेषता है कि ये क्षयोपशम रूप में ही रहेंगे, कभी भी औदयिक रूप में नहीं आयेंगे। मान लो, पूरा का पूरा ज्ञान ढक दिया हो ऐसा कभी नहीं होगा। किसी भी जीव का पूरा का पूरा मतिज्ञान, श्रुतज्ञान ढक गया हो ऐसा कभी नहीं होगा, यदि ऐसा हो गया तो उस जीव का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा। वह जीव ही नहीं रहेगा, क्योंकि वह कर्म से पूरा का पूरा आवरिक अथवा आवरणिक होने के कारण वह अपने स्वभाव से रहित हो गया। वह जीव अजीव बन जाएगा और ऐसा कभी भी नहीं होता है। एकेन्द्रिय जीव भी होगा, छोटे-से-छोटा जीव भी होगा तो उसमें भी थोड़ा सा ज्ञान तो प्रकट रहता ही है। इसी तरह से जो ये पाँच लब्धियाँ है दान, लाभ, भोग, उपभोग और वीर्य, ये भी उसमें कुछ न कुछ रूप में प्रकट रहती हैं। जो उसका अपना शरीर है वह उसी का उपभोग कर रहा है वही उसके लिए भोग का कारण है, वही उसका लाभ है, वही उसके लिए दान की शक्ति है कि वह किसी के लिए काम आ रहा है। ये सब चीजें जो उसमें हैं इन्हीं चीजों के कारण उसमें क्षयोपशम भाव चल रहा है। यहाँ यह बताया गया है कि क्षयोपशमभाव जो होते हैं ये सब इन्हीं चीजों में लगते हैं। चार ज्ञान, तीन अज्ञान, तीन दर्शन और पाँच लब्धियाँ इन्हीं में क्षयोपशमभाव प्रतीत होते हैं। ये सब मिलकर अट्ठारह भाव हो जाते हैं | शंका- भाव से तात्पर्य क्या है? समाधान-भाव से तात्पर्य आत्मा का परिणाम है। इसे कहते हैं-अपनी चेतना का ही जो परिणाम है वह किसी न किसी रूप में अन्य कर्मों से प्रभावित भी हो रहा है, वही 'स्वतत्त्व' है, वही उसका भाव है। स्व अर्थात् अपनी ही आत्मा का परिणाम, उस परिणाम का नाम ही भाव है। सभी जीवों में ज्ञानावरण कर्म का क्षयोपशम भी है और कुछ ज्ञानों पर पूर्ण रूप से आवरण भी है जैसेअवधिज्ञान है, मनःपर्यय ज्ञान है, ये हमारे ज्ञान पूर्णरूप से ढके हुए हैं। लेकिन हमारा ज्ञान पूरा का पूरा ढका हुआ नहीं है, मतिज्ञान और श्रुतज्ञान तो हमारे थोड़े-थोड़े तो हैं। ये जो दो ज्ञान हैं वह क्षयोपशमज्ञान के रूप में है। यह क्षयोपशम किसी का कम है और किसी का अधिक है। हम थोड़ा-सा पुरुषार्थ करेंगे तो यह बढ़ता चला जाएगा। यह बढ़ेगा तो अभ्यास करने पर ही बढ़ेगा। हम चाहते हैं कि कोई मंत्र मिल जाए और वह बढ़ जाए। मंत्रों से इस जन्म में बढ़कर नहीं मिलेगा। दूसरे जन्म में बढ़कर मिलेगा। इस जन्म में हमें थोड़ा सा पुरुषार्थ तो करना ही पड़ेगा। क्योंकि मंत्रों की आराधना करोगे तो वह इस जन्म में फल प्रदान करे ऐसा कोई आवश्यक नहीं है, परन्तु वह अगले जन्म में अवश्य फल दिखाएगा। पुरुषार्थ करते-करते थोड़ा मंत्र जाप भी करते रहोगे तो उससे आपका ज्ञान वृद्धि को प्राप्त करेगा। सबसे बड़े मंत्र आचार्यों के ये सूत्र होते हैं। ये सूत्र आचार्य अपनी विशुद्धि से, अपने ही ज्ञान से लिखते हैं। उनके पास कितना ज्ञान होगा जो वे इतना बड़ा सार एक-एक लाइन में निबद्ध कर देते हैं और उस विषय का क्रमशः वर्णन करते चले जाते हैं। ऐसे ज्ञान 201

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