Book Title: Jeev Vigyan
Author(s): Pranamyasagar
Publisher: Akalankdev Vidya Sodhalay Samiti

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Page 18
________________ जीव-विज्ञान | क्षायोपशमिक भाव 4 ज्ञान 3 दर्शन 5 लब्धि दान 3 कुज्ञान मतिज्ञान कुमतिज्ञान चक्षुदर्शन श्रुतज्ञान कुश्रुतज्ञान अचक्षुदर्शन अवधिज्ञान कुअवधिज्ञान अवधिदर्शन | मन:पर्ययज्ञान लाभ भोग उपभोग वीर्य (ज्ञानावरण) वर्तमान (दर्शनावरण) 1 के क्षयोपशम से सर्वघात स्पर्द्धक (पूर्ण घात) उदयाभावी क्षय (देशघातिरूप फल) (अंतराय) क्षयोपशम आगामी सदवस्थारूप उपशम (दबना) सम्यक्त्व (दर्शन मोहनीय) 18 * चारित्र * संयमासंयम ( चारित्र मोहनीय) (मोहनीय) देशघाति स्पर्द्धक ( आंशिक घात) उदय (फल देना) आगे 'कु' लगा देने से कुमतिज्ञान कुश्रुतज्ञान और कुअवधिज्ञान हो जाते हैं। इस तरह से ये तीन अज्ञान हो जाते हैं और ये तीनों भी क्षायोपशमिक होते हैं। यदि जीव को सम्यग्दर्शन है तो सम्यग्ज्ञान के रूप में कहलाएगा। इसके बाद तीन दर्शन आते हैं। चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन और अवधिदर्शन- ये तीनों क्षायोपशमिक भाव हो गये । इसके बाद लब्धियाँ पाँच होती है। दान, लाभ, भोग, उपभोग और वीर्य । ये पाँच लब्धियाँ क्षायिक भी होती हैं और क्षयोपशम-भाव के साथ भी रहती हैं। प्रत्येक संसारी जीव में ये क्षयोपशम भाव नियम से होते हैं। यदि उसमें सम्यग्दर्शन होगा तो सम्यग्ज्ञान के रूप में कहलाएगा।

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