Book Title: Jeev Vigyan
Author(s): Pranamyasagar
Publisher: Akalankdev Vidya Sodhalay Samiti

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Page 10
________________ जीव-विज्ञान क्षयोपशम से होता है। यह कर्म से निर्पेक्ष भाव है इसलिए यह पारिणामिक भाव है। जिस जीव में जैसा रहता है वह उस जीव में अपने ही कारणों से, अपने ही स्वभाव में बना रहता है इसी को उपादान कारण भी कहते हैं। उपादान का अर्थ हैं अपनी आत्मा की शक्ति और अपनी आत्मा की योग्यता। वह आत्मा की योग्यता इस पारिणामिक-भाव पर ही निर्भर करती है। आचार्य इस सूत्र में भावों के भेद बता रहे हैं कर्म घातिया (आत्मा के अनुजीवी गुणों को घाते) (47) अघातिया ज्ञानावरण (5) दर्शनावरण (७) मोहनीय (28) अंतराय (5) दर्शन मोहनीय (3) चारित्र मोहनीय (25) मिथ्यात्व सम्यगमिथ्यात्व सम्यक्त्व प्रकृति नोकषाय (9) हास्य - रति अरति शोक भय जुगुप्सा स्त्रीवेद कषाय (16) अनंतानुबन्धी क्रोध-मान-माया-लोभ (4) अप्रत्याख्यानावरण क्रोध-मान-माया-लोभ (4) -प्रत्याख्यानावरण क्रोध-मान-माया-लोभ (4) - संज्वलन क्रोध-मान-माया-लोभ (4) वेदनीय आयु नाम गोत्र पुरुषवेद नपुंसकवेद द्विनवाष्टादशैकविंशतित्रिभेदा यथाक्रमम् ।। 2 ।। अर्थ-द्विअर्थात दो, नव अर्थात् नौ, अष्टादश अर्थात् अट्ठारह, एकविंशति-इक्कीस, त्रि अर्थात् तीन , यथाक्रमम्-जो भाव जिस क्रम में लिखा हुआ इनको भी उसी क्रम में लगाना। 10

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