________________ manu m anANNRNIMARAawanARRIRAMMARHI RETRIEV जीव विचार प्रकरण ARRIORTS नश्वर का गहराई से अनुभव कर चेतना की शुद्धता के शिखर का स्पर्श कर लें। हमारे पास अभी पैंतालीस आगमों की संपदा है। हर आगम किसी न किसी रूप में चैतन्य जगत और जड जगत का भेद समझाने का ही प्रयत्न करता हुआ नजर आता है। वह षड्-द्रव्यों की प्ररूपणा के द्वारा हो या नव-तत्त्व के माध्यम से हो। मूल दृष्टिकोण तो एक ही है- जीव आत्म तत्त्व और अनात्म तत्त्व के विज्ञान को समझ ले। नव तत्त्वों में जीव तत्त्व सबसे महत्त्वपूर्ण है। भगवती सूत्र, प्रज्ञापना सूत्र, जीवाभिगम सूत्रादि अनेक आगमों में जीव तत्त्व का विशद विवेचन उपलब्ध होता है। जीव के रूप-स्वरूप, गति आगति, उपपात-च्यवन आदि अनेक बिंदुओं पर अत्यंत स्पष्टता से व्याख्या की गयी है परंतु उन्हें पढ पाना और पढकर स्मृति कोष में सुरक्षित रख पाना बहुत दुष्कर कार्य है। इतनी विशाल श्रुत राशि को थामने वाले विरले पुरूष ही होते हैं। प्रज्ञाशील पुरूष तो फिर भी उनका पारायण करके स्मृति कोष में सुरक्षित कर लते हैं परंतु जिनकी बुद्धि न तो सूक्ष्म है, न तीक्ष्ण है, उनके लिये इन महाग्रंथों का अध्ययन कर पाना बहुत मुश्किल कार्य है। उनका विशाल आकार और सूत्रों की गंभीरता मन में पहले से ही भय उपस्थित कर देती है। . आचार्यों का चिंतन इस दिशा में बहा / सामान्य बुद्धि और जीव तत्त्व को जानने की रूचि रखने वालों को नजर में रखते हुए सरल भाषा में अनेक प्रकरणों की रचना पूर्वाचार्यों ने की। वर्तमान में जीवतत्त्व का प्रारंभिक अध्ययन हेतु जीव विचार प्रकरण के अध्ययन को प्रथम स्थान प्राप्त है। जैन साहित्याकाश के चमकते सितारे वादिवेताल श्री शांतिसूरीश्वरजी म.सा. द्वारा रचित इस प्रकरण का इतना महत्त्व है कि यदि इसे तत्त्व महल में प्रविष्ट होने का द्वार कहे तो भी कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। केवल इक्यावन गाथाओं में जीव तत्त्व का विवेचन समाविष्ट होने से जहाँ एक ओर यह प्रकरण संक्षिप्त और सरल है, वहीं दूसरी तरफ इसकी रचना शैली सरस, सुगम होने से सहज ही जिज्ञासु तत्त्व ज्ञान का अमृत प्राप्त कर लेता है। - mamimaginaar