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५०] जैन युम-निर्माता । देखा होगा । सेवक बोला-न महाराज मैंने वह प्रदर्शन भी नहीं देखा। भ्राट ने कहा भरे ! तुम यह क्या कहते हो ? तब तुमने वह नों का खेल भी नहीं देखा ? नहीं महाराज, मैं यह खेल कैसे देख सरता था, मैंतो अपने जीवन के कसको देख रहा था । मेरा जीवन तो क्टोरेके इन तैल बिंदुओं में ममाया था, तैलका एक बिन्दु मेग जीवन था। मैंन अपने इम+टोरे और अपने पैरों को मार्ग पर चलने के स्विाय किसी को भी नहीं देखा सेवकने कहा । सम्राट्ने इसे जानेकी
आज्ञा दी। फिर वे भद्र पुरुषकी ओर देखकर बोले-संधु देखो जिम ता६ इम पुरुषके साष्टने बहुतसे खेल तमाशे और प्रदर्शन होते रहने पर भी यह अपने २६५बिंदुमे नहीं हट सका, उसी तरह इस संपूर्ण वैभव के रहते हुए भी मैं अपने ९६॥ १२ स्थिर रहता हूं। मैं समझ रहा हूं कि मेरे सामने कालकी नंगी तलवार लटक रही है, मैं समझ रहा हूं मेग जीवन पहाहको उस सकरी पाडंडी परसे चल रहा है जिसके दोनों ओर कोई दीवाल नहीं है। थोड़ा पैर फिसलते ही मैं उस स्वंद को गिर पडूंमा जहां मेरे जीवनके एक कणका भी पता नहीं लगा सकेगा। प्रत्येक कार्य करते हुए मेरे जीवनका सय मेरे साम्इने रहता है और मैं उसे भूस्ता नहीं हूं, इतने सम्रज्यकी व्यवस्थाका भार रखते हुए भी भात्म विस्मृत नहीं होता । कि कुछ रु 6 करके बोले- भद्र पुरुष ! मैं समझता हूं. मी बातोसे तुम्हारे हृदयका समाधान हो गया होगा, साथ ही मैं यह भी कहना चाहता हूं कि तुम और मैं हरएक मानव बंधन में रह कर भी अपने कर्तव्य मार्ग पर चल सकते है, और मात्मशांसिका लाभ ले सकते है।