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२०.] जैन युन-निर्माता। नेकी शक्ति रहती है। मैं इस युद्धमें अवश्य नाऊंगा, मेरे होते हुए भाप युद्धके लिए बाएं यह हो नहीं सकता, दृढ़ता पूर्वक प्रण करता हूं, यदि भान ही उस दुष्ट अपराजितको पार कर भापके चरणों के निकट उपस्थित न कर दं तो में भापका पुत्र नहीं । भाज्ञा दीजिए, मेरा समस्त शरीर उस शक्तिहीन अपराजित नामधारी विद्रोहीका दमन करने के लिए शीघ्रतासे फड़क रहा है।
कुमारके हृदयकी परीक्षा हो चुकी थी, अब उसके वीरता पूर्ण सत्साह सकी प्रशंसा करते हुए महाराज बोले-" वत्स ! मैं तुमपर बहुत खुश हूं, तुम नामो और युद्धकुशल सैनिकोंको अपने साथ ले जाकर उस रद्दण्ड अपराजितको पराजित कर अपनी शक्तिका परिचय दो।"
सैन्य बलसे गर्वित अपराजित उदंड बन गया था, वह बड़ी सेना लेकर महागजा वासुदेवके भाषीन एक नगरपर माक्रमण कानेको अग्रसर होरहा था । इसी समय गजकुमारकी संक्षक्तामें युद्ध करनेके लिये सजी हुई एक बड़ी भारी सैनाके आने की उसे सूचना मिली।
अपराजितने अपनी शक्तिका कुछ भी ध्यान न रखते हुए, गजकुमारकी सेना पर भीषण वेगसे भाक्रमण किया। कुमारकी सेना पहलेसे ही सतर्क थी। उसने अपराजितके माक्रमणको विफल करते हुए प्रचण्ड गतिसे शम चलाना प्रारम्भ किया । कुमारकी सेनाके अचानक माक्रमणसे अपराजितके सैनिक क्षुब्ध होकर पीछे हटने कगे। अपनी सेनाको पीछे हटते देख अपराजितके कोषकी सीमा न रही। वह मागे बढ़कर सेनाको उत्साहित करता हुमा कुमारकी सेना पर ती वेगसे समपात करने लगा। गजकुमारने उसके सामने