Book Title: Jain Yuga Nirmata
Author(s): Mulchandra Jain
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 117
________________ wromwearwwwmwwwARAMAKARWARILALHOINOMICRO २४०] जैन युग-निर्माता। मुदर्शन-नगरके प्रसिद्ध श्रेष्ठो सागादत्तका सुपुत्र था। वह युवा हो चुका था। लेकिन उसका विरक्त मन विवाहकी ओर अभी तक माकर्षित नहीं हुआ था। माताने उसकी शादीके लिए अनेक प्रयत्न किए थे कई सुन्दर कन्याओंको वह निर्वाचन क्षेत्रमें का चुकी थी। लेकिन सुदर्शनके मनपर कोई भी अपना प्रभाव नहीं डाल सकी थीं। उसका मन विषय विरक्त अबोध बालककी ही तरहका था । ___मित्र उसे अपनी विनोद मंडलीमें लेजाते थे लेकिन मौनके अतिरिक्त उन्हें सुदर्शनसे कुछ नहीं मिलता था। वे उसकी इस नीरसतासे चिंतित थे। लेकिन उनका कोई प्रयत्न सफल नहीं होता था। माज उसके मित्रने उसे चितित देखा था। सुदर्शनकी भावभंगीसे वह उसके हृद्गत विचारों को समझ गया था। उसकी इस बेवसी पर प्रसन्न : बट अपने मनमें बोला- मालुम होगया, आज यह महात्मा किसी सुन्दरी के रूप जाल में फंस गये हैं । मदनदेवका जादू माज इनपर चल गया है इसीलिए आज यह किसी रमणीके रूपके उपासक बने बैठे हैं। मैं तो यह सोच ही रहा था, रमणीके कुटिल कटाक्षके सामने इनका ज्ञान और विवेक अधिक दिन तक स्थिर नहीं रहे सकेगा। भाज वह सब प्रत्यक्ष दिख रहा है। वह सदर्शनके हृदयको टटोलते हुए बोला-मित्र ! भान आप इस प्रकार वितित क्यों होहे है ! क्या आपके पूजा पाटमें भाज कोई अंतराय आगया है ! अथवा आपके स्वाध्यायमें कोई उपसर्ग उपस्थित होगया है ? बतलाइए आपके सिपर यह चिंता का भूत क्यों सवार है ! सुदर्शन मानो किसी स्वप्नको देखते हुए नाग उठा हो बोला-..

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