Book Title: Jain Yuga Nirmata
Author(s): Mulchandra Jain
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 165
________________ meenawwwwwwwsranAmit Nownwarwalam M ANANDHAMNANWomwwomen ३३६ ] जैन युग-निर्माता । महाराज ! इतने अचंमेकी बात मैंने भान तक नहीं देखी। राजकुमारके शरीरके अन्दर बड़ा ही चमत्कार है, माप चलकर देखिए, मैंने उनके शरीरपर तलवारका वार किया लेकिन उनके पुण्यमय शरीर पर उसका कुछ भी असर नहीं हुआ। बधिकके द्वारा कुमार वारिषेणके सम्बंधमें इस आश्चर्यजनक घटनाका होना सुनकर महाराज अपने मंत्रियों सहित वहां जानेका प्रयत्न करने लगे। इसी समय उन्होंने अपने दाबामें एक व्यक्तिको भाते हुए देखा-वह विद्युत चोर था। विद्युत यद्यपि अत्यंत निष्टु' प्रकृतिका पुरुष था लेकिन जब उपने प्रजाप्रिय कुमार वारिषेगके निर्दोष प्राण नष्ट होने का संवाद सुना तब उसका हृदय जो कभी किसी घटनासे नहीं पिघस्ता था-करुणासे आई हो उठा । इसी समय उमने बधि. कोंके द्वारा कुमार वारिपेणकी विचित्र रीतिसे प्राण रक्षाका समाचार सुना । अब उसे अपने अपराधके प्रकट होने का भी भय हुआ था इसलिए यह शीघ्रसे शीघ्र महाराज के पास अपना अपराध प्रकट कानेके लिए भाया था। आते ही वह महाराजाके चरणों में गिर पड़ा और बोला-महाराज ! आप मुझे नहीं जानते होंगे। मैं आपके नगरका प्रसिद्ध चोर विद्युत हूं, मैंने इस नगामें रहकर बड़े २ अगष किए हैं। यह ममौलिक हार मैंने दी चुराया था लेकिन अपनेको सैनिकों के हाथसे बचता हुआ न देखकर ध्यानाथ हुए कुमारके माम्हने फेंक दिया था। वास्तवमें कुमार बिलकुल निर्दोष हैं। हारका चुगनेवाला तो मैं हूं, भाप मुझे प्राण दण्ड दीजिये । विद्यतचोरके कथनस महाराजको कुमार बारिषेणकी निर्दोषताप पूर्ण विश्वास होगया । वे शीघ्र ही वधस्थलकी आर पहुंचे।

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