Book Title: Jain Yuga Nirmata
Author(s): Mulchandra Jain
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 175
________________ गणगज गौतम . . १५९ रहस्यसे विमुम्ब रियाज्ञान मक्त गौ-. Dr HIT : मोक्षलक्ष्मीका महापात्र - सा । धन्य : ।। . पष्ट और धन्य भह मनोनी सोमा पाखंडों का धंय कानेवाली, मिना यादियों की मद्रविमर्द और सत्यार्थ धर्मका इम्य दध 'टत नेताली मात्र न ड वर' वाणी का प्रकाश हा। उनका दियव निदा तस्व. पंन मनाय, नक पदाये, हा के जव, छड लेदया ननियों के पास, शंच मामान, नान और गृहस्थोंक ५२४ और का विवेतन न ... गृध और च जीवनके +70147 जाने लगे औ क : 15: भा का ओंका नारा " । जयनी'त ज ५. म्। एत का विश्व शमें फटमने लगा, म..अपना मियाार त्या मान व शामकी शरण माए । नदी डि ताई .. श्रा। अज्ञानताका अधेि । मागा । अत्याचार और नाच रोक 1की, हि और बलिदान पथात अमिव •ष्ट हुश्रा औ सभी पाणी मुख और शांति की गयी लेने लगे कतिको कृष्ण अमाव-2 की जानी राय थी, ., मय कुछ तारे झिममिल हो रहे थे, म कामना गुनास, मंद पाने के लिए रात्रिको क्षीण चादरें छिग हुअा मुमकुम ! ५, अन्वतम कुछ समयमें ही अपने साम्राज्यमे हाथ धानको शा. प्रभात होने में

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