Book Title: Jain Yuga Nirmata
Author(s): Mulchandra Jain
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 168
________________ जैन युग-निर्माता । ३४८ ] Tant 10am TOWY LOWER YORK 7 हवती बर्द्धमान अनंतशक्ति महात्मा महावीरने, कठोर उपसर्गौके साम्हने विजय प्राप्त की । आत्म शक्ति बढ़े हुए भगवान् महावीरने कथानकी संरक्षता में अपनी समस्न आत्म शक्तियका संगठन किया फिर पद दलित कराए और क्षीण हुए मोड सुभटपर भयंकर प्रहार क्रिया । ध्यानकी तं व्रनाके साम्हने मोह एक क्षणको भी स्थिर नहीं रह सका | उसके साथी कोष, मान, माया, लोभ राग, द्वेष अ. दिके पैर भी उखड़ गए, उसका सम्पूर्णन: पतन हुआ | महावीरके निर्मल आला अनंत ज्ञानका प्रकाश फुगत हुआ उसके उदित होते ही संपूर्ण आत्म गुण विकसित होगए, केवलज्ञान - और अनंनदर्शनकी दिव्य शक्ति उन्होंने नगर के सभी पदार्थों का दिग्दर्शन किया ! ( ४ ) आत्मविजयी महात्मा महावीर के अलौकिक ज्ञान साम्राज्य का महा महोत्सव मनाने के लिए स्वर्गाधिपति इन्द्र देवताओंके समूह सहित आया। उनके अज्ञान म्राज्यको महिना प्रदर्शि करने के लिए कुबेर को उनका सुन्दर सभास्थल बनाने का आदेश दिया । मानवों के हृदयों में आश्चर्य हर्ष और आनंदकी धारा बहानेवाला सभास्थल बन गया । उसमें चार समाएं थीं समा के बीचमें सुन्दर सिंहासन था, सिंहासन पर बैठे हुए भगवान महावीरके दिव्य शरीरका दर्शन कर देव और मानव अपने नेत्रोंको सफल बनाने लगे । महावीर के समवश- णमें प्रत्येक जातिके मानवको समान अधिकार था । प्राणी समुदाय उनका भाषण सुननेको उत्पुरु था, लेकिन

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