Book Title: Jain Yuga Nirmata
Author(s): Mulchandra Jain
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 143
________________ श्रद्धालु श्रेणिक सार [ २९५ Bullllllilities उनका दंग अब प्रकट होगया, आप अपने बौद्ध भिक्षुकों के इस दंभको स्पष्ट देखिए, क्या यह सब देखते हुए भी आपकी उपर श्रद्धा रहेगी ? रानीके युक्तियुक्त वचन सुनकर महाराज निकत्तर थे। लेकिन अपने गुरुओं के इस परामनसे उनके हृदयको गहरी चोट लगी। ध्यानस्थ जैन साधुओं को देखकर आज उनकी वह चोट गइरी हो गई थी, उन्होंने साधुके ध्यानका परीक्षण चाहा। उन्होंने किसी तरहका विचार किए विना ही अपने शिकारी कुत्ते उब पर छोड़ दिए । BAA 1 साधु परम ध्यानी थे । उनके ऊपर क्या उपसर्ग किया जारहा है. इसका उन्हें ध्यान भी नहीं था । उनकी मुद्रा उसी तरह शांत और निर्विकार थी । उनका हृदय उसी तरह आत्मध्यान में गोते खा रहा था। उनकी मौन शांतिका उन शिकारी कुत्तों पर भी प्रभाव पड़े बिना नहीं रहा । सिक्से हिंसक पशु भी आज उनकी इस शांतिसे प्रभावित हो सकता था । कुत्ते उनके सामने आकर मंत्र की लिन सर्पकी तरह शान्त खडे रह गए । वित्रसारकी आज्ञा के विपरीत कार्य हुआ। वे कुत्ते दौड़ा कर साधुकी समाधि भंग करना चाहते थे, लेकिन सायुकी समाधिने कुर्तोको भी समाधिन्थ बना दिया। वे यह दृश्य देखकर दंग रह गए, साथ ही उन्हें साधुके इस प्रभाव पर ईर्षा भी हुई। वे सोचने लगेयह साव अवश्य ही कोई मंत्र जानता है जिसके बलसे इसने मेरे बलवान हिंसक कुत्तोंको अपने वशमें कर लिया है, लेकिन में इसके मंत्र बलको अभी मिट्टी में मिलाये देता हूं। मैं अभी इस दुष्ट जादूगरका सर घड़से उड़ाए देता हूं फिर देखूंगा कि इसका जादू कहाँ रहता

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