Book Title: Jain Yuga Nirmata
Author(s): Mulchandra Jain
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 157
________________ [२०] तपस्वी-वारिषेण । ( आत्मदृढ़ता के आदर्श ) ( १ ) मगघसुन्दरी राजगृहकी कुशल और प्रवीण वेश्या थी । वह अत्यन्त सुन्दरी तो थी ही लेकिन उसकी कामकला चातुर्यता और हावभाव विलासोंकी निपुणताने उसे और भी विमुग्ध कर दिया था - उसके भावपूर्व गायन, मृदु मुस्करान और तिरछी चितवन पर अनेक युवक विवेकशून्य होजाते थे अपना हृदय और सर्वस्व समर्पित कर देते थे । afts और विलासप्रिय मानवोंको अपने विलास से भरे कृत्रिम लावण्यके ऊपर आकर्षित करने में वह अत्यंत निपुण थी। वह किसी को मधुर वाक्य विलाससे, किसीको आशापूर्ण कटाक्षसे, किसीको नयनाभि

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