Book Title: Jain Yuga Nirmata
Author(s): Mulchandra Jain
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 156
________________ ३१४ ] जैन युग-निर्माता । गुरुदेव उन पर प्रसन्न थे । बोले-" जंबुकुमार ! तुम तेजस्वी त्यागी हो। तुम्हारा सांसारिक कर्तव्य समाप्त हो चुका है तुम्हें दीक्षा दूंगा ।" सुधर्माचार्यने उन्हें साधु दीक्षा साथ पिता दत्त, विद्युत चोर और उसके ५०० साधु दीक्षा ली। 1 अब मैं दी। उनके साथियोंने भी जंबुकुमारने उग्र तपश्चरण किया । तपश्चर्याके प्रभाव से उन्हें पूर्ण श्रुतज्ञान प्राप्त हुआ। जिस दिन उन्हें यह अद्भुत शास्त्र ज्ञान उपरन्त्र हुआ था उसी दिन उनके गुरु धर्माचार्यको कैवल्य प्राप्त हुआ । जंबुकुमार तपश्चर्य के क्षेत्रमें अब बहुत आगे बढ़ गए थे । उन्होंने अपने बढ़े हुए तपके प्रभावसे कर्म बंधनको कमजोर कर लिया था। पैंतालीस वर्षकी आयुर्मे जंबुकुमारको केवस्य लाभ हुआ । कैवल्य के प्रभाव से आत्मदर्शन हुआ । चालीस वर्षका जीवन धर्मो देश और संसारको शांति सुखके पथ प्रदशन में व्यतीत हुआ । कार्तिकी कृष्णा प्रतिपदाको वे मधुपुरीके उद्यान में अपने योगोंका निरोध कर बैठे, इसी समय उनका आत्मा नश्वर शरीर से निकल कर मुक्ति स्थानको पहुंचा । जनताने एकत्रित होकर उनका गुणगान किया और उनकी पुण्य स्मृतिको अग्ने हृदयमें धारण किया ।

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