Book Title: Jain Yuga Nirmata
Author(s): Mulchandra Jain
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

View full book text
Previous | Next

Page 137
________________ AMIRMIRMewwwwraanwinner महावीर बईमान। [२८५ निश्चयी बना दिया था। माघ धर्माधिकारियोंका उन्हें कड़ा मुकाबला करना पड़ा किन्तु वे अपनी मनोभावनाओंके प्रचारमें उत्तीर्ण हुए। मानवताके संदेशको मानवोंके हृदय तक पहुंचाने में वह सफल हुए। उनकी यह सकस्ता साम्यवादका शंखनाद या, मनुष्यकी विजय थी और विशेष महत्ताका दर्शन कराने वाली स्वर्ण किरण थी। मानवोंने उस स्वर्ण प्रकाशमें अपनी शक्तिको विकसित करने. वाले स्वर्ण पथको देखा। किन्तु उनके पद उसपर चलने में शंकित थे उन्हें उसपर चलने के लिए उन्होंने प्रेरित किया, परिचालित किया और इच्छित स्थानपर चलने की शक्ति प्रदान की। वे उन पथके पथिक पने जिसपर चलनेकी उन्हें चिकाससे लालसा थी। सम...! की सरिताके वेशमें पम्पके किनारे दह गए और एक विशाल नट बन गया, 3 साम्यवादके दर्शन हुए। साम्यवादका रहस्य उन्होंने जनताको समझाया धर्म और सामाजिक क्रियाओं में किसी भी जातिके मानवको समानाधिकार है। निर्धनता, शुद्धता मथना स्त्रीत्वको शृम्बलाई धार्मिक तथा आत्म माधनमें किमी प्रकार बाधक नहीं होमती: जानित अथवा व्यक्तिगत अधिक रोका धार्मिक पदम्या में कोई अधिकार नहीं। धर्म प्राणीमात्रके कल्याण के लिए है। जितनी भाइचकता धर्मकी एक घनिक के लिए है उतनी ही निर्धन के लिए है। धर्मको लेकर प्रत्येक प्राणी अपना आत्म कल्याण कनेके लिए स्वतंत्र है। यह उनका दिव्य संदेश था। महावीर के समस्तमें प्रत्येक जातिके बी-पुरुषको धौरदेश

Loading...

Page Navigation
1 ... 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180