Book Title: Jain Yuga Nirmata
Author(s): Mulchandra Jain
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 127
________________ [ २६३ All MIUI ULA किन्तु पुत्र प्राप्ति के साथ ही तुझे पति वियोग होगा । पुत्र जन्मके समय ही तेरे स्वामी इस संसारकी मायाका त्याग कर तपस्वी बन जायेंगे ! ध्यानगम होगए हैं। वह उठी, डोले में झूलती हुई अपने सुकुमार सुकुमाल । ܙ ܙ ܙ ܙ ܙ यशोभद्राने सुना-देखा, महात्मा देव दर्शन किया और हर्ष विषाद के घर चल दी । ( २ ) कालकी चाल नियमित है । संसारके प्राणी जो नहीं बनना चाहते उसे समय बना देता है । जो देखना नहीं चाहते है समय अपनी परिवर्तन शक्ति में वही दिखला देता है । समयकी गतिने यशोद्रा के लिए वह अवसर ला दिया जिसके लिए वह अत्यन्त उत्सूक थी । वह अब गर्भवती था । अपन हर्मके डिंडोलेको वह हौले हौले झुका रही थी, उसका हृदय किसी अभूतपूर्व आशा के प्रकाशसे जगमगा रहा था । नगर के टद्यानमें कुछ तस्वी महात्मा पधारे थे । सुरेन्द्रदत्त उनके दर्शन के लाभको संवरण नहीं कर सके । ने शीघ्र ही उद्यनमें पहुंच गए । महात्माकोका उपदेश चल रहा था संसारकी नश्व ताका नम दिग्दर्शन होरहा था, उपदेश प्रभावशाली था | सुरेन्द्रदत्तके हृदय पर इस उपदेशने इतना गहरा रंग जमाया कि वे उसी में रंग गए, घरकी सुधि गई। पत्ली के प्रेमका तूफान भंग हुआ और वैभवका नशा उतर गया । अधिक सोचने के लिए उनके पास समय नहीं था । वे उसी समय तपस्वी बन गए । इधर, उसी समय यशोभद्राने एक सुन्दर बालकको जन्म दिया । उसके प्रकाशसे सारा घर जगमगा उठा । स्वजन हितैषियोंके समूह से

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