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१६६] जैन युग-निर्माता । बुलानेका कारण बतलाती हुई वे प्रेमभरे स्वामें श्रीकृष्णजीसे बोलीपुत्र ! तुमसे यह बात अपरिचित नहीं होगी कि कुमार नेमिनाथ अपने विवाह सम्बन्धके लिए किसी तरह भी तैयार नहीं होते, और विवाह के विना फिर मागे कुलकी मर्यादा कैसे स्थिर हेगी ? तुम सम्पूर्ण कलाकुशल हो, तुम्हें मेरे मनकी चिन्ता दूर करना होगी, और किसी प्रकार भी कुमारको विवाह के लिए तैयार करना होगा। ___माता शिवादेवीकी बात सुनकर श्रीकृष्णजी प्रसन्न हुए, वे भी यही चाहते थे। उन्होंने शिवादेवीसे कहा-मा जी । आपने मुझसे अबतक नहीं कहा, नहीं तो यह कार्य कवका सम्पन्न हो जाता। लेकिन अब भी कोई हानि नहीं है, माप अब निश्चित रहिए । कुमार नेमिनाथका विवाह अब होकर ही रहेगा! यह कहकर वे राजमहल लौट आए।
मार्गमें चलते २ उन्होंने सोचा, यह टंक रहा । नेमि कुमारको शक्तिहीन बनाने में अब कुछ समयका ही विलम्ब है। उनकी शक्ति उसी समयतक सुरक्षित है जब तक वे महिलाओं के मोहसे दूर हैं। मनुष्योंकी महान शक्ति और पक्रसका धंश करनेवाली संसारमें यदि कोई शक्ति है तो यह एक मात्र स्त्री शक्ति है । जब तक इनके रूपजालमें कोई व्यक्ति नहीं फंसता तब तक ही वह अपने विवेकको सुरक्षित रख सकता है, लेकिन जहां वह इन विलासिनी तरुणी बालाओं के मधुमय हास्य और मधुर चितवनके साम्हने आता है वहां अपना सब कुछ उनके चरणों पर समर्पित कर देता है। संसारमें यदि मानवी शक्ति किसीके साम्हने पददलित और पराजित होती है तो वह नारीकी रूपशक्ति ही है।