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.१४२ | जैन युग-निर्माता। ने २६मणके मृत शरीरको कन्धे पर रखकर घूमते थे। कभी उसे भोजन खिलाते, कभी शृगार कगते और कभी उसे सोने का निष्फल
और शाम्यजनक प्रयत्न करते थे । राज्यकार्य उन्होंने त्याग दिया था। इ.स.हर मन का यह मोहका मंसार चलता रहा, अंमें न में बंधन टूट', उन्होंने अपने भाईग मृतक संक' किया।
- नाटके अनेक दृश्यों को देखते २ श्रीरामका हृदय अब ऊर गा था। राज्य कार्य को भव के वातावरण, ४ र दह अपनको इ. रम्बन, चते थे । उनका निर्मल म त्मापरसे मोहका भावग्ण हट चु। 4. । उन । पात्मा की चा प्रल :ो 2 और एक दि. ......'पुत्रको राज्यभार सोनकर सन्यासी बन गए ।
ॐ सूर्य-२ ३ ६ जिस तरह चमक हैं उसी तरह श्रमिक दिव्य ते. से प्रकाशमान हो उठा। देवताओंको उना इ- निममता पर आश्चर्य होने लगा, उनकी क्षाका तीर छुट चुका था। योगी रामके चारों ओर विलास का वातावरण फैल गया. क.या पंन नाद, धुकरों का गुंजन, पुप्पोकी मत्त सुरभि और बाल, क. मृदु से सारा वन गृज उठः ।
प। समस: म. तो १. ५६ . सात वर्ष भी मा नीता था पक्ष बेक र ५. पोन विजिन हुए, प्रीस के आरत-७ की विजय हुई।
योगी रामके निर्ममत्वकी देवताओंने प्रशंस की महा ! रहस अब महात्मः २.म ही थे।