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११८] जैन युग-निर्माता। आगे बढ़े। उन्होंने महात्मा संजयंतको पत्थरोंसे मारना प्रारंभ किया। पत्थरोंकी वर्षा उस समय तक नहीं रुकी जब तक उन्होंने महात्माको जीवित समझा, अंतमें मृतक समझ कर वे उन्हें वहीं छोडकर अपने नगरको भाग गए।
महात्मा संजयंतने इस उपसर्गको बड़ी शांतिसे सहन किया । कर्मफल समाप्त होचुका था, स्वर्णको अंतिम आंच लग चुकी थी, अब उनका भात्म शुद्ध होचुका था, उन्हें विश्वदर्शक केवलज्ञान प्राप्त हुआ।
उनके संपूर्ण कर्म एक-साथ नष्ट होचुके थे, शरीरसे भायुका संबंध नष्ट होचुका था इसलिये उन्होंने उसी समय निर्वाण प्राप्त किया।
___मानव और देवताओं ने मिलकर उनका निर्वाण उत्सव मनाया और उनके अद्भुत धैर्यका गुणगान किया ।