Book Title: Jain Tattva Shodhak Granth Author(s): Tikamdasmuni, Madansinh Kummat Publisher: Shwetambar Sthanakwasi Jain Swadhyayi Sangh Gulabpura View full book textPage 8
________________ को निर्देश किया एव माननीय कुमट सा० के सतत प्रयत्नों के फलस्वरुप ही यह प्रथ आज आपके कर कमलों में पहुच सका है। इस प्रथं मे चौबीस द्वारों के माध्यम से जैन नव तत्वों को हृदयंगम कराने का प्रयत्न किया गया है । यथा स्थान शास्त्रों से विविध गाथाओं को भी उद्धृत कर कथ्य को अधिक प्रमाणोपेत ढंग से निरूपित किया गया है तथा अनेकों बार प्रश्नोत्तर शैली का अवलंबन लेकर इसे रोचक व सुबोध भी बनाया गया है । सपूर्ण जैन-तत्व - ज्ञानार्णव को संक्षिप्त कर गागर में उपस्थित करने का भागीरथ प्रयास इस ग्रंथ में द्रष्टव्य है । स्वाध्यायी श्रावकों के लिए एव जैन तत्व का परिचय पाने में रुचि रखने वाले श्रावकों के लिए उपयोगी जानकर ही इसे श्री श्वे० स्था० जैन स्वाध्यायी सघ द्वारा प्रकाशित कराया जा रहा है। इसके प्रकाशन की प्रेरणा में कारणीभूत धर्म प्रेमी, सुश्रावक श्रीमान् रतनलालजी सा० बोकड़िया धन्यवाद के पात्र हैं साथ ही श्रीमान मदनसिंहजी सा० कुमंट का आभार मानना भी मैं अपना कर्तव्य मानता हूँ जिन्होंने व्यस्तता होते हुए भी इसका अनुवाद करने का कार्य सम्पन्न कर हमें अनुगृहीत किया हैं । 1 1 हम उन सभी दानदाता सद्गृहस्थों का भी नाम स्मरण किए बिना नहीं रह सकते जिन्होंने अपने शुभ द्रव्य का इस प्रकाशन में उपयोग कर कृतार्थ किया है । 1 15 t זי 7 1~ → 1 1 2 ↑ इस शुभ अवसर पर परमे श्रद्धय, प्रशान्तात्मा, पूज्य " प्रवर्तक गुरुदेव श्री छोटमलजी म सा परम ज्योतिर्विद शास्त्रज्ञ प० मुनि श्री कुन्दनमलजी म० सा० एव' मधुरः व्याख्याती पं० मुनि श्री सोहनलालजी म० स० का भी परमकृतज्ञ हूँ जिनकी FPage Navigation
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