Book Title: Jain Tattva Shodhak Granth
Author(s): Tikamdasmuni, Madansinh Kummat
Publisher: Shwetambar Sthanakwasi Jain Swadhyayi Sangh Gulabpura

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Page 6
________________ गुरुदेव श्री के समक्ष प्रसंग चलाया । सयोग से मैं भी उस समय गुरुदेव श्री के समीप ही खड़ा था। उनका मुझे निर्देश मिला जिसे स्वीकार करने में मैंने अपना सौभाग्य समझा । मेरे लिए जैन तात्त्रिक साहित्य का अनुवाद करना और वह भी गुजगती भाषा से, जिसका मुझे अल्प बोध है, एक कठिन कार्य था । किन्तु परम पूज्य गुरुदेव श्री की अनुकम्पा एव आशीर्वाद का ही यह सुफल है कि मैं इसे आपके समक्ष इस रूप में प्रस्तुत कर सका । अनुवाद - कार्य में समय २ पर मुझे पण्डित रत्न, परम ज्योतिर्विद गुरुवर्य श्री कुन्दनमलजी म० सा० ने मागदर्शन प्रदान कर अनुगृहीत किया है। उनकी प्रेरणा इस अनुवाद कार्य में मेरा विशेष सबल रही है अत: उनका आभार मानना भी मैं अपना परम कर्तव्य मानता हूँ। साथ ही प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से मुझे सहायता प्रदान करने वालों के प्रति मैं श्रद्धावनत हूँ । 1 यदि धर्म प्रेमी पाठकों को अगाध तात्विक साहित्य की गहराई तक प्रवेश करने में इस पुस्तक से यत्किंचित भी सहायता मिली तो इसे मैं अपना सौभाग्य मानते हुए परिश्रम की सफलता मानूंगा । सुज्ञेषु किं बहुना । ब्यावर दि. १८-४-७१} 骂 मदनसिंह कुम्मट एम ए, बी, एस

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