Book Title: Jain Tattva Darshan Part 06
Author(s): Vardhaman Jain Mandal Chennai
Publisher: Vardhaman Jain Mandal Chennai

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Page 22
________________ अर्थ मुँह हो जाता है। तो आप देखेंगे कि यहाँ भी अर्थ बदल गया। ऐसे ही अन्य भी अनेक शब्द है जिनमें बिंदु लगाने या हटाने से अर्थ बदल जाता है, जैसे उदर: उंदर (चूहा), पेंट: पेट, गांडी (पागल): गाडी, घंट: घट, भांग भाग, बँगला: बगला (बगुना), चिंता: चिता, मंजूरी: मजूरी ( मजदूरी), रंग: रंग, नंग: नग, मंद: मद आदि दृष्टांत: (1) एक बिंदु आगे-पीछे, न्यूनाधिक हो गया, तो दो ब्राह्मण परस्पर झगडे पर उतर गए जिसकी कथा इस प्रकार है बदरीनाथ और गंधेजीनाथ की कथा :- बनारस में गंगा के तट पर एक बडी विद्यापीठ थी उसमें बदरीनाथ एवं गंधेजीनाथ नामक दो महान पंडित रहते थे। एक बार दोनों पंडित ऋषिकेश की यात्रा करने निकलें, चलते चलते वे एक दिन ऋषिकेश पहुँच गए और वहाँ की एक धर्मशाला में उतर गए। नहा धोकर पूजा पाठ करके भोजनशाला में भोजन किया, रात्रि में छत पर जाकर सो गए। सोते-सोते बदरीनाथ ने अपने पेट पर हाथ फेरते हुए गंधेजीनाथ को कहा अरे पंडितजी ! आप की बुआ ने आपका नाम तो सुंदर रखा है, फिर भी मेरी इच्छा है कि आपके नाम पर जो बिंदु लगा हुआ है वह निकल जाए तो आपका नाम सुंदर ही नहीं बल्कि अति सुंदर बन जाए, आप गंधेजीनाथ में गधेजीनाथ बन जाओगे । बच्चों ! आप समझ गए न ? गंधेजी के मस्तक से बिंदु हट जाए तो क्या स्थिति होती है ? परंतु गंधेजी महाराज तो तनिक भी आकुल नहीं हुए। हँसते-हँसते सब सुन लिया। फिर बदरीनाथ ने पुन: पूछा अरे गंधेजीनाथ ! क्यों हमारी बात पसंद नहीं आई क्या ? दाढी पर हाथ फेरते हुए गंधेजी बोलें, नहीं-नहीं जी ! आपकी बात तो बहुत ही सुंदर है, लेकिन मैं सोच रहा हूँ कि मेरे नाम पर से बिंदु को हटाकर रखना कहाँ पर ? अगर उसे आपके नाम पर रख दे, तो बात बन जाए। आपका नाम सारे विश्व में विख्यात हो जाए। आप बदरीनाथ मिटकर बंदरीनाथ बन जाओगे। बदरीनाथ तो यह सुनते ही आग बबूला हो गए और जोर शोर से बोलने लगे। तब गंधेजीनाथ ने कहा कि हमारा बिंदु हमारे नाम पर ही रहने दीजिये, मैं गंधेजनाथ और आप बदरीनाथ .. बस...? बच्चों ! देखा एक बिंदु के फेरफार की बात मात्र से कैसी धमा चौकड़ी मच गई। अतः आप जब सूत्र कंठस्थ करें तब विशेष ध्यान रखें। जहाँ बिंदु न हो, वहाँ बोलें नहीं, और जहाँ हो वहाँ बोलना न चूकें। (2) इसी प्रकार बिंदु की भूल से कुणाल राजकुमार को आँखे फोडनी पडी थी, जिसकी कथा भी आगे दी जा रही है रज जैसी भूल ! गज जैसी सजा ! महाबुद्धिशाली चाणक्य का नाम तो आप सभी ने सुना ही होगा। वे जैन मंत्री थे। उन्होंने बडे परिश्रम से नंद वंश का नाश करके मौर्य वंश की स्थापना की थी। उस मौर्यवंश के प्रथम सम्राट के रुप में चंद्रगुप्त का राज्यभिषेक करने में तथा उनके साम्राज्य को विस्तृत करने में मंत्रीश्वर चाणक्य का बहुत बड़ा योगदान था। पाटलीपुत्र मौर्यवंश की राजधानी थी। चंद्रगुप्त के बाद बिंदुसार नामक सम्राट हुआ। तत्पश्चात् अशोक नामक सम्राट हुआ। सम्राट अशोक के पश्चात् राजसिंहासन का उत्तराधिकारी उसका पुत्र कुणाल 20

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