Book Title: Jain Tattva Darshan Part 06
Author(s): Vardhaman Jain Mandal Chennai
Publisher: Vardhaman Jain Mandal Chennai

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Page 68
________________ सभी में असंख्य बेइन्द्रिय जीवों की उत्पत्ति होने से वे अभक्ष्य बनते हैं। नियम : अ) मधु (शहद), मक्खन, शराब और मांस, ये चार महाविगई है, इसलिए इनका सर्वदा त्याग करना। ब) हिम-बर्फ वगैरह का त्याग करना। स) मेथीवाले सभी आचार तथा शास्त्रीय विधि से नहीं बनाए हुए हो, वैसे सभी आचारों का दूसरे दिन त्याग करना। द) कच्चे दूध, दही, छाछ, द्विदल (कठोल) के साथ नहीं वापरना। इ) रात्रि भोजन का तथा बहुबीज का त्याग करना। हरे और सूखे अंजीर, बैगन, खसखस, राजगरा वगैरह बहुबीज हैं। इ) ब्रेड वगैरह वासी चीजें, काल हो चुका आटा, मिठाई, खाखरा, नमकीन वगैरह अभक्ष्य है। उनमें वैसे ही वर्ण, गंध, रस, स्पर्श के बेइन्द्रिय जीव उत्पन्न हो जाते हैं। इसलिए नहीं वापरना। बाईस (22) अभक्ष्य वापरने से होने वाले नुकसान : बाईस अभक्ष्य आरोग्य नाशक, सत्त्वनाशक एवं बुद्धि नाशक है। इनसे त्रस और स्थावर जीवों का संहार होता है। तामसी और क्रूर प्रकृति उत्पन्न होती है। G.तेइन्द्रिय : जूं, चींटी, ईयल (गेहूँ में पैदा होने वाले कीड़े) कानखजुरा, मकोड़ा, उदेहि (दीमक), धान्य के कीड़े, छाण के कीड़े वगैरह तेइन्द्रिय जीव हैं। नियम :अ) कोई भी धान्य, छानकर वापरना और सड़े हुए धान्य में होने वाले जीवे की सावधानी पूर्वक जयणा करना (ठंडे स्थान पर रख देना)। ब) धान्य में कीड़े पड़ने के बाद धान्य को धूप में न रखकर, कीड़े होने की संभावना होने के पहले ही धूप में रख देने चाहिए। इसी प्रकार खटिया, बिस्तर, गादी वगैरह में भी खटमल अथवा दूसरे जीव जंतु के पैदा होने के पहले ही धूप में रखने का खास उपयोग रखना। घर में सफाई रखना जिससे चींटी वगैरह न हो। __H. चउरिन्द्रिय बिच्छू, भौरे, मच्छर, डाँस, मक्खी, कोकरोच वगैरह। नियम : ___ अ) घर में सफाई रखनी जिससे ये जीव उत्पन्न ही नहीं होंगे। ब) वे मर जायें ऐसी दवा वगैरह घर में नहीं छांटनी। 166

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