Book Title: Jain Tattva Darshan Part 06
Author(s): Vardhaman Jain Mandal Chennai
Publisher: Vardhaman Jain Mandal Chennai

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Page 118
________________ रात्रि में भोजन करते समय हंस कुमार की - आहार में उपर से सर्प का चिप गिरा । उसकी माता ने स्थिति जानने के लिये दीपक प्रकट किया और भोजन के थाल में देखा तो पाया कि भोजन विष मिश्रित है। तेरी माता ने ऊपर नजर डाली तो वहां पर एक साप को बैठा हुआ देखा, तेरी माता समझ गई कि जरुर इस सर्प के मुहँ में से जहर भोजन मे पडा होगा। जिससे भोजन विष मिश्रित हो गया है। हंस की यह स्थिति देखकर हम सभी करुण क्रन्दन करने लगे। इतने में एक विषवैद्य आ पहुँचे। विष वैद्य को हमने पूछा, हे वैद्यराज ! यह विष किसी भी प्रयोग द्वारा दूर होगा क्या ? तब उन्होंने समझाया कि किसी अमुक वार, अमुक तिथि और अमुक नक्षत्र में यदि विष चढा हो तो ही वह उतरता है, नहीं तो नहीं उतरता। साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि हंस को सर्प ने कांटा नहीं था, परंतु सर्प का विष उसके उदर में गया है, अत: यह बात खूब ही विचारणीय है। मैंने वैद्यराज को पूछा कि अब हंस किसी भी उपाय से बच सके ऐसी स्थिति है या नहीं? तब वैद्य ने मंत्र का आह्वान करके कहा कि तुम्हारा उपाय सफल नहीं होगा। सर्प का विष धीरे-धीरे इसके शरीर में व्याप्त होगा और इसके प्राण लेकर ही रहेगा। एक माह की अवधि मे इस बालक की हड्डियाँ गल जाएगी और अंत में यह मृत्यु धाम सिधारेगा। वैद्य के वचन सुनते ही हमारे तो होश उड गए। मैं हंस को एक शय्या में सुलाकर पाँच दिन तक देखता रहा कि क्या घटना होती है। पाँच दिन के पश्चात् देखा तो हंस के शरीर में छिद्र-छिद्र हो गए थे। वास्तव में तेरे चले जाने के पश्चात् हम विषम स्थिति में फँस गए। तेरी तलाश में घर से बाहर निकलकर नदी-नाले लाँघकर अटवी को पार करता हुआ मैं इस नगर मे आ पहुँचा। पुण्ययोग से तेरा यहाँ मिलन हुआ। घर छोडे मुझे एक माह व्यतीत हो चुका है। वैद्य के कथन के अनुसार आज हंस अवश्य ही मौत के मुंह में समा गया होगा। पिता के मुख से हंस की बाते सुनने पर राजा केशव को अत्यंत दुःख हुआ। केशव ने विचार किया, यहाँ से मेरा नगर लगभग सौ योजन दूर होगा । क्या मैं अपने भाई का मुख नहीं देख सकूँगा? जैसे ही यह विचार मन में अंकुरित हुआ कि तुरंत ही केशव और उसके पिता कुंडनपुर नगर में अपने ही घर में हंस के पास खडे दिखाई पडे, क्योंकि केशव को देव का वरदान प्राप्त था कि मन में जो विचार करोगे वह मैं बैठा-बैठा तुम्हारे सारे ही मनोरथ पूर्ण करुंगा। केशव ने हंस का शरीर जीर्ण शीर्ण अवस्था में पाया। सारा ही शरीर सड चुका था। उसकी दुर्गंध चारों ओर फैल रही थी जिससे उसके पास खडे रहने के लिये भी कोई तैयार न था। केवल उसकी माता उसके पास बैठी थी जिसकी आँखों में से अश्रुधारा प्रवाहित हो रही थी और वह विलाप कर रही थी। हंस के निकट ही मानो मृत्यु आकर उपस्थित हुई हो ऐसा लगता था। सभी ने आशा छोड दी थी। नरक जैसी घोर वेदना इस मृत्युलोक में हंस भुगत रहा था। केशव ने विचार किया कि मैं इधर कहाँ से आया ? जैसे ही यह विचार किया कि वहाँ वह्नि देव दिखाई पड़ा। वह्नि देव ने कहा मित्र ! मैं ही तुझे वहाँ से उठाकर यहाँ लाया हूँ। इस प्रकार कहकर वह्नि देव 116

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