Book Title: Jain Tattva Darshan Part 06
Author(s): Vardhaman Jain Mandal Chennai
Publisher: Vardhaman Jain Mandal Chennai

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Page 120
________________ निर्दोष सीताजी पर कलंक क्यों आया ? महान् पवित्र आत्मा सती सीताजी पर जन-सामान्य ने कलंक (झूठा) लगाया। जिससे सीताजी को अनेक कष्ट भुगतने पड़े। क्योंकि जैनदर्शन CAUSE& EFFECT थियरी को मानता हैं। कारण के बिना कार्य उत्पन्न होता ही नहीं । इसका संबंध पूर्व भव से है, क्योंकि उनकी आत्मा पूर्व भव में आलोचना (प्रायश्चित्त) न ले सकी। इसलिये महासती के ऊपर भी काला कलंक लगा । श्रीभूति पुरोहित की पत्नी सरस्वती ने पुत्री को जन्म दिया। उसका नाम वेगवती रखा गया। क्रमशः वह यौवनावस्था को प्राप्त हुई, फिर भी उसकी धर्मकार्यों में अच्छी लगनी थी। एक दिन उसने कायोत्सर्ग में खडे सुदर्शन मुनिश्री को देखा, मुनि भगवंत त्यागी और तपस्वी थे। जिन्हें अनेक लोग वंदन करते थे। वेगवती ने हँसी में आरोप लगाते हुए लोगों से कहा कि इनको आप क्यों वंदन करते हो? इनमें क्या पड़ा है? मैंने तो स्त्री के साथ क्रीड़ा करते हुए इन्हें देखा है और इन्होंने उस स्त्री को दूसरी जगह भेज दिया है। यह सुनकर शीघ्र ही लोकमानस बदल गया। __ ऐसी बात "विश्वस्त सूत्र' जैसी अपने गाँव की लड़की वेगवती के मुंह से..... सबको विश्वास हो गया। महान पवित्र आत्मा होते हुए भी कुमारिका वेगवती ने सिर्फ उपहास में आरोप लगाया था, परंतु लोग कलंक की घोषणा सुनते ही मुनिश्री के प्रति दुर्भाव वाले बन गये। यह देखकर सुदर्शन मुनिश्री ने वेगवती के ऊपर द्वेष नहीं किया, परंतु अपने कमों का विचार कर अभिग्रह किया कि जब तक यह कलंक नहीं उतरेगा, तब तक मैं कायोत्सर्ग नहीं पारुंगा। कायोत्सर्ग के प्रभाव से देव ने वेगवती के मुख को श्याम व विकृत बना दिया, कोयले जैसा काला और टेढ़ा-मेढ़ा.... उसके पिताश्री यह देखकर आश्चर्यचकित हो गये... मेरी सुंदर लड़की को यह कौन-सा रोग हो गया...."पुत्री! यह क्या किया? कोई दवाई तो नहीं लगाई। कुछ उल्टा-सुल्टा तो नहीं किया।" श्रीभूति ने आश्चर्य से पुछा। वेगवती ने नम्रता से जवाब दिया, पिताश्री! और तो मैने कुछ नहीं किया, परंतु कौतुक वृत्ति से मजाक में लोगों को कहा कि "सुदर्शन मुनि को मैंने स्त्री के साथ देखा है।" यह सुनते ही श्रीभूति क्रोधायमान हुए कि, "अररर...यह तूने क्या किया? जा, अभी जा और उस महान मुनि से माफी माँगकर आ...। पिताजी के रोष से वेगवति भयभीत हो गई और प्रकट रूप से वह थर-थर काँपने लगी। उसने सभी लोगों के सामने मुनि से क्षमा याचना की और कहा कि मैंने उपहास में असत् दोषारोपण करके आपके ऊपर कलंक लगाया हैं, आप निर्दोष हैं । यह सुनकर लोग वापस मुनिश्री का सत्कार करने लगे। प्रकट रूप से माफी मांगने के पश्चात् उसने आलोचना न ली। बाद में उसने दीक्षा ली। चारित्र जीवन की सुंदर आराधना कर मृत्यु पाकर पांचवे देवलोक में गई। वहाँ से मरकर जनक राजा की पुत्री सीता बनी । रामचन्द्रजी की पत्नी बनने के बाद वनवास के दरम्यान जंगल में रावण ने उसका अपहरण किया। भयंकर युद्ध हुआ। रावण की करूण मौत हुई। राम की विजय हुई। फिर राम, लक्ष्मण और सीता को अयोध्या में लोगों ने बड़ी खुशी से प्रवेश करवाया। ____ महान् सती सीताजी पर लोग झूठा दोषारोपण करने लगे कि सीताजी इतने दिन रावण के घर अकेली रहीं, अतः वह कैसे सती रह सकती है? रामचन्द्र जी ने कोई परीक्षा किये बिना ही सीताजी को F118)

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