Book Title: Jain Tattva Darshan Part 06
Author(s): Vardhaman Jain Mandal Chennai
Publisher: Vardhaman Jain Mandal Chennai

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Page 129
________________ हाथ को उलटाकर उंगलियों के छोर से कोहनी तक स्पर्श करके ले जाते हुए 'हास्य, रति, अरति परिहरु' कहना । आखों आदि अंगों की प्रतिलेखना के लिए मुँहपत्ति के छोर खुले और कड़े रहें, इस प्रकार चित्र के अनुसार तैयार करें। 13 वैसी मुँहपत्ति से दोनों आँखों के बीच के भाग की प्रतिलेखना करते हुए 'कृष्ण लेश्या' बोलें । 15 17 चित्र 13 के अनुसार 14 मुँहपत्ति बाएँ हाथ में तैयार कर दाहिने हाथ के मध्यमभाग से उंगुलियों के छोर तक, फिर उलटा हाथ करके उंगली को कोहनी तक स्पर्श करके ले जाते हुए 'भय, शोक, दुगंछा परिहरु' ऐसा बोलना चाहिए। तैयार किये गये खुले तथा कड़े छोर को सीने की ओर फिराना चाहिए तथा उस समय दोनों हथेलियों को खोलकर सीने की तरफ करें। इसी तरह दाई आँखों की प्रतिलेखना करते हुए 'नील लेश्या' मन में बोलें । 16 18

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