Book Title: Jain Tattva Darshan Part 06
Author(s): Vardhaman Jain Mandal Chennai
Publisher: Vardhaman Jain Mandal Chennai

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Page 130
________________ 19 इसी तरह बाई आँखों की प्रतिलेखना करते हुए 'कापोत लेश्या परिहरु' मन में बोलें । 21 मुँह के समान सीने के तीन विभागों में बीच में दाहिने बाएँ क्रमश: माया शल्य, नियाण शल्य मिथ्यात्व शल्य परिहरु बोलें । 23 बाएँ कंधे के ऊपर से नीचे प्रतिलेखन करते 'माया' तथा हुए बाहिनी कांख (बगल) का प्रतिलेखन करते हुए 'लोभ परिहरु' बोलें। 25 बाहिने पैर की बांई ओर, बीच में और दाई ओर चरवले की अंतिम दशी (कोर) से घुटन से लेकर पैर के पंजे तक प्रतिलेखन करते हुए क्रमश: वाउकाय, वनस्पतिकाय, सकाय की जयणा (रक्षा) करुं बोलें। 20 आँखों के समान मुँह के भी तीन विभागों में बीच में दाहिने बाए क्रमश: रस गारव, ऋद्धि गारव, साता गारव परिहरुं, बोलें । 22 दाएँ कन्धे को ऊपर से नीचे प्रतिलेखन करते हुए ''क्रोध' तथा दाई कांख (बगल) का प्रतिलेखन करते हुए 'मान परिहरु' मन में बोलें। 24 दाएँ पैर की बांई ओर, बीच में और दांई ओर चरवले की अंतिम दशी (कोर) घुटन से लेकर पैर के पंजे तक प्रतिलेखन करते हुए क्रमश: पृथ्वीकाय, अप्काय, तेउकाय की जयणा करुं बोलें

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