Book Title: Jain Tattva Darshan Part 06
Author(s): Vardhaman Jain Mandal Chennai
Publisher: Vardhaman Jain Mandal Chennai

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Page 69
________________ स) किसी भी स्थान पर बैठते या कोई वस्तु रखते या लेते समय विकलेन्द्रिय जीवों की रक्षा के लिए नजर डालकर दृष्टि पडिलेहणा अवश्य करनी चाहिये एवं कोई जीव हो तो उसे बचाना चाहिए । उपरोक्त बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय और चउरिन्द्रिय को विकलेन्द्रिय भी कहा जाता है। इन तीनों के पर्याप्त एवं अपयप्त ये दो भेद होने से 32 = 6 भेद | ध्यान रखे : एकेन्द्रिय से चउरिन्द्रिय तक के सभी जीव संमुर्च्छिम और तिर्यंच है। 1. संमूर्च्छिम पंचेन्द्रिय तिर्यंच ये जीव गर्भज तिर्यंच के समान ही दिखते हैं। भैंस, सिंह वगैरह संमूर्च्छिम भी होते हैं और गर्भज भी होते हैं । J. संमूर्च्छिम मनुष्य संमूर्च्छिन मनुष्य, गर्भज मनुष्य जैसे नहीं दिखते हैं। इन्हें पाँच इन्द्रियाँ होती है। परंतु इनका शरीर अत्यन्त छोटा (अंगुल का असंख्यातवां भाग जितना ) होने से, एक साथ असंख्य उत्पन्न होने पर भी नहीं दिखते। इनका आयुष्य भी अंतर्मुहूर्त का ही होता है। वे गर्भज मनुष्य के 14 अशुचि स्थानों में उत्पन्न होते हैं। ये अपर्याप्त ही होते हैं। K. मनुष्य के 14 अशुचि स्थान 1. विष्टा 2. मूत्र 3. कफ - थूक 4 नाक का मैल 5. उल्टी 6. झूठा पानी अथवा भोजन 7. पित्त 8. रक्त (खून) 9. वीर्य 10. वीर्य के सूखे पुद्गलों के भीगने से एवं शरीर से अलग रखे हुए भीगे पसीनेवाले कपड़ों में 11. रस्सी (मवाद) 12. स्त्री-पुरुष के संयोग में 13. नगर की खालों में (गटरों में) 14. मनुष्य के गुर्दे में । मनुष्य के शरीर से अलग हुए इन 14 स्थानों में 48 मिनिट के बाद सतत असंख्य संमूर्च्छिम पंचेन्द्रिय मनुष्य उत्पन्न होते हैं, मरते हैं, उत्पन्न होते हैं, मरते हैं। इस तरह निरंतर उत्पत्ति एवं मरण चालू रहता है। इन जीवों की रक्षा के लिए इन अशुचि पदार्थों की बराबर जयणा करनी चाहिए। L. जयणा के नियम 1. झूठे बर्तन 48 मिनिट होने से पहले धो लेना। 2. उबाला हुआ पानी ठण्डा हुआ है या नहीं यह देखने के लिए उसके अंदर हाथ नहीं डालना । लेकिन बाहर से थाली स्पर्श करके जान लेना । 3. थाली धोकर पीना और कपड़े से पोंछना । 4. पसीने वाले कपड़े उतारकर डूचा (गोलमटोल) करके बाथरूम में नहीं रखना, पसीने वाले होने सूखा देना । 67

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