Book Title: Jain Tattva Darshan Part 06 Author(s): Vardhaman Jain Mandal Chennai Publisher: Vardhaman Jain Mandal ChennaiPage 84
________________ द्रव्य की अपेक्षा से सर्व द्रव्य नित्य हैं। 'पर्याय' (अवस्था) विनाशी और अध्रुव है। अत: पर्याय (परिवर्तनशीलता की) दृष्टि से सब द्रव्य अनित्य हैं। (3) 'स्वतन्त्र कर्ता': षड्द्रव्यों में सिर्फ आत्मा ही कर्ता है। अपना कार्य करने में जो स्वतन्त्र है, वह कर्ता है। ___ सर्व कर्म रहित पूर्ण शुद्ध स्वरूप वाले मुक्तात्माएँ स्वशुद्ध स्वभाव के ही कर्ता हैं। संसारी जीव का शुद्ध स्वरूप कर्मों से आच्छादित होने से वह राग द्वेषादि विभाव दशा अथवा उसके कारणभूत कर्म का कर्ता बनता है। फिर भी संसारी जीव अरिहंत परमात्मा के पवित्र ध्यान से अंशत: स्वभावदशा का कर्ता-भोक्ता हो सकता है। अजीव तत्त्व के भेदादि का स्वरूप अजीव या जीव रहित ऐसे जड़ पदार्थ इस जगत् में 5 प्रकार के हैं। अजीव के भेद :| धर्मास्तिकाय | 3 | स्कंध, देश, प्रदेश | अधर्मास्तिकाय | 3 | स्कंध, देश, प्रदेश 3. आकाशास्तिकाय | 3 | स्कंध, देश, प्रदेश 4. I पुद्गलास्तिकाय __4 स्कंध, देश, प्रदेश, परमाणु 5. | काल 14 1. 2. بی ادبا ما स्कन्ध देश प्रदेश परमाण pin O अस्तिकाय : (अस्ति=प्रदेश, काय समूह) = प्रदेशों का समूह * स्कंध :- पूर्ण वस्तु। जैसे बूंदी का लड्डु। * देश :- वस्तु का अमुक भाग। * प्रदेश :- वस्तु में रहा हुआ अविभाज्य अंश (केवली भगवंत की दृष्टि से भी जिनके दो विभाग न हो) * परमाणु :- वस्तु से अलग हुआ अविभाज्य अंश। 82Page Navigation
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