Book Title: Jain Tattva Darshan Part 06
Author(s): Vardhaman Jain Mandal Chennai
Publisher: Vardhaman Jain Mandal Chennai

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Page 115
________________ गुरु तो यथार्थवादी और महाधैर्यवाले है! वे इस प्रकार मृत्यु से कदापि डरने वाले नहीं है। अत: मुझे पूर्ण विश्वास है कि ये मेरे गुरू नहीं है, बल्कि यह तो सारी यक्ष की मायाजाल है। केशव जब मन में इस प्रकार सोच रहा था तब यक्ष ने मुनि को मारने के लिए मुदगर उठाया और वह बोल उठा-अरे केशव ! बोल भोजन करता है या नहीं ? वरना तेरे गुरु के टुकड़े-टुकडे करता हूँ? केशव ने तुरंत उत्तर दिया अरे यक्ष ! ये मेरे गुरू नहीं है। वे तुझ जैसे के छल में कभी नहीं फँस सकते, स्वयं ढीले पडे या किसी से ठगे जा सकें ऐसे नहीं है। केशव की ये बातें सुनकर कृत्रिम मायावी गुरू ने कहा केशव ! मैं तेरा गुरु धर्मघोष ही हूँ। मुझे बचा. अन्यथा यह यक्ष मुझे चकनाचुर कर डालेगा और तुरंत ही यक्ष ने तो मुदगर से मुनि की खोपडी को चकनाचूर कर डाला और मुनि के प्राण पखेरु उड गए। फिर भी केशव तो स्व प्रतिज्ञा में अविचल दृढ रहा। यक्ष ने कहा अरे ! अब तो समझ और मेरी बात मानकर तू भोजन कर लें। यदि मेरे कहे अनुसार तू करता है तो मैं तेरे मृत गुरु को जीवित कर देता हूँ, और तुझे आधा राज दे दूंगा, परंतु यदि तूं नहीं मानेगा तो इस मुदगर से तेरे भी प्राण नाश कर दूंगा। कायर और नामर्द व्यक्ति ऐसे विकट प्रसंग पर साहस खो बैठते है, परंतु धैर्यवान केशव ने तो यक्ष को कहा, अरे यक्ष ! हमारे गुरू ऐसे हो ही नहीं सकते, इस बात का मुझे पूर्ण विश्वास है। तू तेरे स्थान पर चला जा। किसी भी कीमत पर मैं अपना नियम भंग नहीं करूँगा। मृतकों को जीवित करने की तुझ में शक्ति हो तो तेरे मृत सेवको, भक्तों तथा तेरे पूर्वजों को जीवित कर। मिथ्या बकवास बन्द कर । तुझ में राज्य-वैभव देने का सामर्थ्य हो तो तेरे इन सेवको को क्यों नहीं दे देता? रह रहकर तू मुझे मृत्यु का भय बताता है, परंतु मैं मौत से डरने वाला नहीं हूँ, जिसका आयुष्य प्रबल है, उसे मृत्यु के मुख में डालने की किसी में भी शक्ति नहीं। धर्मोरक्षति रक्षित: - धर्म ही मेरा रक्षणकर्ता है। केशव को ऐसे अडिग, निडर और प्रतिज्ञा पालन मे दृढ देखकर यक्ष केशव पर अति प्रसन्न हुआ और उसने केशव को आलिंगन किया तथा उसकी दृढ़ता की भूरि-भूरि प्रशंसा की। यक्ष ने कहा, केशव! तेरी बात सत्य है, ये तेरे गुरू नहीं है। मृतकों को सजीवन करने की मुझ में शक्ति नहीं है। मैं किसी को राज्यादि भी नहीं दे सकता। इस प्रकार जब यक्ष बोला , तब मुनि के वेश में पड़ा हुआ मुर्दा यकायक खडा होकर आकाश के मार्ग में पलायन कर गया। केशव के 7-7 दिन के उपवास होने पर भी, यक्ष द्वारा घोर उपसर्ग होते हुए भी, वह तनिक भी नहीं डिगा, तब यक्ष ने कहा तू अब आराम कर और प्रात: काल में इन सभी के साथ पारणा करना। साथ ही उस यक्ष ने तुरंत ही उस स्थान पर स्व माया से एक शय्या तैयार करके उसे बताई, जिसमें केशव निश्चिन्त होकर सो गया और भक्त जन उसके पाँव दबाने लगे। वह अत्यंत थका हुआ होने से तुरंत निद्राधीन हो गया। थोड़ी ही देर में यक्ष ने अपने माया से प्रभात का समय विकुर्वित किया जिससे ऐसा ही लगे कि सवेरा हो चुका है। यक्ष बोला, अरे केशव ! उठ उठ ! सुबह हो चुकी है। केशव ने देखा तो आकाश में सूर्य दिखाई दे रहा था। चारों ओर प्रकाश व्याप्त हो चुका था। केशव पल भर तो विचारमग्न हो गया। उसने (113

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