Book Title: Jain Tattva Darshan Part 06
Author(s): Vardhaman Jain Mandal Chennai
Publisher: Vardhaman Jain Mandal Chennai

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Page 78
________________ VII. संघयण 6, VIII. संस्थान VI. संघातन - 5, X. आनुपूर्वी - 4, XI. विहायोगति - 2. पिंडप्रकृति की उपप्रकृतियाँ निम्नानुसार है : I. गतिनाम कर्म : जिस कर्म के कारण ( उदय से) नरकादि पर्याय की प्राप्ति होती है, उसे गति नाम कर्म कहा जाता है। इसके कुल 4 भेद है (1) नरकगति नामकर्म (2) तिर्यंचगति नामकर्म (3) मनुष्यगति नामकर्म (4) देवगति नामकर्म । II. जाति नामकर्म : जो कर्म एकेन्द्रिय से लगाकर पंचेन्द्रिय तक के जीवों को जाति प्रदान करता है, उसे जातिनामकर्म कहा जाता है। इसके कुल 5 भेद है। यह हीनाधिक इन्द्रिय - चैतन्य का व्यवस्थापक है। - 6, IX 20, III. शरीर नाम कर्म : "शीर्यते इति शरीरम्" जो शीर्ण- विशीर्ण = नष्ट होता है, उसे शरीर कहा जाता है। इसके कुल 5 भेद है : (1) औदारिक शरीर नामकर्म : जिस कर्म के कारण उदार, स्थूल पुद्गलो से बना हुआ शरीर मनुष्य गति और तिर्यंचगतिवाले जीव को प्राप्त होता है। - (2) वैक्रिय शरीर नामकर्म : जिससे विविध क्रिया (अणु-महान, एक अनेक) संपन्न करने में सक्षम शरीर। यह देव - नारक को प्राप्त होता है। (3) आहारक शरीर नामकर्म : जिस कर्म के बल पर आहारक लब्धियुक्त चौदह-पूर्व के धनी साधु / महाराज देवाधिदेव भगवंत की ऋद्धि-सिद्धि के दर्शन और स्वयं की शंका- संशय निवारणार्थ एक हाथ का शरीर धारण करते हैं - बनाते हैं। (4) तैजस शरीर नामकर्म : जिस कर्म के कारण शरीर में आहार को पचाने वाले तेजस पुद्गलों के समूह की प्राप्ति होती है (5) कार्मर्ण शरीर नामकर्म : जिसके कारण जीव के साथ संलग्न कर्म - समूह सूक्ष्म शरीर रूप धारण करता है। IV. अंगोपांग नामकर्म : जिसके उदय से (1) औदारिक, (2) वैक्रिय, और (3) आहारक शरीर को मस्तक, उदर, वक्ष, पीठ, दो हाथ, दो पांव आदि आठ अंग, अंगुलिआदि उपांग और पर्व, रेखादि अंगोपांग प्राप्त होते है जबकी एकेन्द्रिय जीव प्रस्तुत कर्म विरहीत होने से उसका शरीर अगोपांग विहीन होता है ओर शाखा पत्रादि विभिन्न जीव के शरीर है। V. बंधन नामकर्म : जिसके उदित होने पर नये औदारिकादि पुद्गल शरीर के विभिन्न पुद्गगलों के साथ लाख की भाँति परस्पर एक-दूसरे से चिपक जाते है। इसके कुल 15 भेद हैं। (1) औदारिक औदारिक, (2) औदारिक तैजस, (3) औदारिक कामर्ण, (4) औदारिक तैजस कार्मण, (5) वैक्रिय - वैक्रिय, (6) वैक्रिय तैजस, (7) वैक्रिय - कार्मण, (8) वैक्रिय - तैजस 76

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