Book Title: Jain Tattva Darshan Part 06
Author(s): Vardhaman Jain Mandal Chennai
Publisher: Vardhaman Jain Mandal Chennai

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Page 39
________________ आदि उनके निमित्त से एक जगह से दूसरी जगह पर रखना नहीं, एवं उन सबको स्पर्श भी नहीं करना। अन्यथा सचित्त के संघट्टा का दोष लगता है। * फ्रीज खोलकर कुछ निकालना नहीं। * अचित्त फुट वगैरह एवं दूध वगैरह को पानी के मटके अथवा फ्रीज के उपर नहीं रखना। . * गरम पानी घर के लिए बनाया हो तो उसके बराबर तीन उकाले लेना चाहिए एवं सचित्त पानी से अथवा सचित्त वस्तु से अलग रखें। * म.सा. को वहोराने के लिए कच्चे पानी से हाथ नहीं धोना चाहिए एवं वहोराने के बाद भी कच्चे पानी से हाथ नहीं धोना चाहिए। अगर हाथ अचित्त से खराब हैं, और धोना है तो कुकर गैस से नीचे उतारने के बाद उसके नीचे रहा हुआ पानी रख ले, जरूरत हो तो, वह पानी अचित्त होने के कारण उसमें हाथ धोकर वोहरा सकते है। * अधकच्ची पकी हुई काकडी आदि म.सा. के लिए अकल्प्य हैं। * फुट वगैरह सचित्त वस्तु सुधारने के बाद 48 मिनट के बाद वहोराएँ। * वहोराते सम्य दूध-घी आदि के छीटें जमीन पर न गिरें। छींटे गिरने पर दोष लगता है। अतः पहले ठोस (कठिन) वस्तु वहोराने के बाद तरल वस्तु वहोरानी चाहिए। जिससे पहले ही छींटा गिर जाये तो म.सा. कुछ भी वहोरे बिना न चले जायें। * छर्दित दोष से बचने के लिए पात्रे रखने के स्थान पर थाली या पाटा वगैरह लगाया जाता है ताकि कोई छींटा जमीन पर न गिरे। फिर थाली का उपयोग खाने के लिए कर लेना चाहिए। म.सा. को वहोराने के पहले या बाद में हाथ नहीं धोने चाहिए अन्यथा म.सा. के निमित्त से हाथ धोने से कच्चे पानी की विराधना का दोष लगता है। इसलिए धोना पडे तो पूर्वोक्त कुकर की विधि अजमाये। B. गोचरी में उपयोग रखने संबंधि कुछ बातें 1. साधु भगवंतों को शुद्ध एवं निर्दोष आहार पानी वहोराने का लाभ मिले इस हेतु से श्रावक श्राविका को जब साधु - संत गांव में हों तब कच्चा पानी, सचित्त एवं रात्रि भोजन का त्याग करना चाहिए | गोचरी के समय को ध्यान में रखते हुए उस अनुसार अपना भी आहार-पानी का समय बना लेना चाहएि। शाम को चौविहार या तिविहार अवश्य करना चाहिए। लेकिन उन सब में गुरू भगवंत का उद्देश्य न आ जाये इस बात का पूरा पूरा ख्याल रखना चाहिए। ऐसा करने पर साधु-संत पधारे तो उन्हें निर्दोष आहार- पानी वहोराने का उत्तम लाभ मिलता है एवं न भी पधारे तो श्रावक को प्रासुक अन्न-जल वापरने से लाभ ही है। 2. साधु बीमार, वृद्ध, बाल, तपस्वी हो अथवा विहार में अव्यवस्था आदि विशिष्ट कारण आ जाने. = 37

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