Book Title: Jain Tattva Darshan Part 06 Author(s): Vardhaman Jain Mandal Chennai Publisher: Vardhaman Jain Mandal ChennaiPage 52
________________ breakfast शब्द रात्रिभोजन के त्याग को सूचित करता है। अत: विश्व की बहुधा जनता रात्रिभोजन के त्याग से सहमत है। ___मांसाहारी पशु दिन को आराम करते है, रात को आहार की खोज में घूमते है। इसी से सिद्ध होता है कि, शाकाहारी पशु रात को आराम और दिन में भोजन करते है। यदि कोई ऐसा कहे कि, आजकल शाकाहारी पशु भी रात को खाते है। यह कहना ठीक नहीं है, क्योंकि उनके मालिक उन्हें दिन में नहीं खिलाते और रात में ही भोजन करवाते है। ___ जंगल में रहने वाले गाय, हिरण आदि पशुओं को भी कभी रात्रिभोजन करते हुए नहीं देखा है। यदि कोई ऐसा कहें, रात में नहीं खाने से दूसरे दिन तक 14-15 घंटे का अंतर होता है। जब की सुबह और शाम के भोजन के बीच बहुत अंतर नहीं है। इस कारण रात्रिभोजन का त्याग वैज्ञानिक ढंगवाला नहीं है, तो वह सत्य बात के अज्ञात है, सुबह में खाने के बाद जितना परिश्रम किया जाता है, उससे बहुत कम परिश्रम रात में खाने के बाद किया जाता है। व्यवहार की दृष्टि से: कोई चुस्त श्रावक एक दिन ब्राह्मण के घर में मेहमान बनकर गया। उस श्रावक ने ब्राह्मण से कहा, मैं रात को भोजन नहीं करता हूँ, दिन को ही करूँगा। वह सुनकर ब्राह्मण ने उसे कहा, क्या रात में छोटेमोटे जीव गिरते है? श्रावक ने कहा, हां... तुम कहो तो मैं तुम्हारी स्त्री की साक्षी दिलाउं। लेकिन तुम्हें बीच में कुछ नहीं बोलना चाहिए। ब्राह्मण को आश्चर्य हुआ, इसने तो मेरी पत्नी को कभी देखा भी नहीं है। श्रावक ने ब्राह्मण की पत्नी से कहा, दीदी... मैं आपको एक बात पूछता हूँ कि, जब भी मैं रात को आचार मांगता हूँ तो, मना करते है। इसका क्या कारण ? उस ब्राह्मणी ने कहा, क्या तुम्हें उतना भी नहीं मालूम की, रात को आचार की बोतल खोलने से उसके अंदर छोटे-मोटे जीव गिरते है और आचार बिगड़ जाता है। श्रावक को खुशी हुई, वह दीदी की तारीफ करने लगा, इसी तरह व्यवहार में भी रात्रीभोजन का त्याग उत्तम है। आरोग्य की दृष्टि से शरीर के स्वाथ्य के लिए भी रात्रिभोजन का त्याग करना आवश्यक है। एक मजदूर पूरा दिन काम करके रात्रि में आराम करता है, उसी तरह दिन में दो-तीन बार भोजन करने के बाद शरीर के स्वाथ्य के लिए रात्रिभोजन त्याग करना चाहिए। रात्रिभोजन करने से पेट का बिगाड़, आँख, कान, नाक, मगज, दांत का बिगाड़, अजीर्ण इत्यादि पीड़ा उत्पन्न होती है। -500Page Navigation
1 ... 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132