Book Title: Jain Tattva Darshan Part 06
Author(s): Vardhaman Jain Mandal Chennai
Publisher: Vardhaman Jain Mandal Chennai

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Page 53
________________ महापाप वैज्ञानिक दृष्टि से भी रात्रिभोजन सदा वर्ण्य है, क्योंकि सूर्य प्रकाशशील है। इसीलिए ही ज्ञान को दीपक की उपमा दी गई है। वैज्ञानिकों का एक मत यह भी है कि सोने से 4 घंटे पूर्व ही भोजन कर लेना चाहिए। यह स्वास्थ्य की दृष्टि से उत्तम है। ___ रात्रिभोजन का हमारे जैन दर्शन में निषेध बताया है। इसका प्रमुख कारण यह है कि सूर्य की रोशनी में नीले आकाश के रंग के सूक्ष्म जीव या तो कहीं छुप जाते हैं या उनकी उत्पत्ति ही नहीं होती है और स्पष्ट दिखाई देने के कारण हम बहुत सी हिंसा से बच जाते है। परन्तु रात्रि में कृत्रिम रोशनी में, उन्हें आकर्षण करने की आकर्षण शक्ति होती है। रात्रि में इन सूक्ष्म जीवों का प्रसार बढ जाता है तथा दृष्टिगोचर न होने के कारण अनायास ही वे जीव भोजन के साथ भक्षण कर लिए जाते है। वैज्ञानिकों के अनुसार - सूर्य की रोशनी में Infrared तथा Ultraviolet Rays पायी जाती है, जो कि X-Rays के समान पुद्गल को भेदकर जितने भी किटाणु होते है उन सबको नष्ट कर देती है। वैज्ञानिक दृष्टि के अनुसार एक और कारण यह भी है कि सूर्य की रोशनी में ऑक्सीजन की मात्रा अधिक होती है तथा कार्बन डाईआक्साइड (Co) की मात्रा कम होती है, जिससे भोजन आसानी से पच जाता है और वातावरण शुद्ध रहता है, जो स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद है। रात्रि में दूषित वातावरण में किए गए भोजन में ऐसा तत्त्व मिलता है, जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक सिद्ध होता है। ___ सूर्य के प्रकाश में स्वाभाविक स्फूर्ति है और सूक्ष्म जंतुओं का अभाव है। प्रकृति स्वच्छ रहती है। प्रकाश ज्ञान का प्रतीक है, और अंधकार अज्ञान का प्रतीक है! रात्रि में सूक्ष्म जीवों की उत्पत्ति होती है। अंधकार में कीटाणु बहुत होते है। वे पुद्गल रात्रिभोजन करने वालों को असर करते है। उनकी बुद्धि भ्रष्ट होती है, श्रद्धा बिगड़ती है और जिसकी श्रद्धा बिगड़ी उनका संसार बढ जाता है। मिथ्यात्व मोहनीय कर्म की उत्कृष्ट स्थिति 70 कोटा कोटी सागरोपम है। इससे समझ सकेंगे की रात्रिभोजन को शास्त्रकारों ने महापाप बताया है, वह सत्य ही है। 51

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