Book Title: Jain Tattva Darshan Part 06 Author(s): Vardhaman Jain Mandal Chennai Publisher: Vardhaman Jain Mandal ChennaiPage 65
________________ नियम : अ) पंखा बार-बार नहीं करना । ब) कपड़े सुखाते समय ज्यादा नहीं झटकना। स) सूखे हुए कपड़ों को तुरंत उठा लेना क्योंकि वस्त्रों के फड़कने से वायुकाय के जीवों की विराधना होती है। द) पर्दे वगैरह बांधकर नहीं रखना, झूले में नहीं बैठना । 5. वनस्पतिकाय :- इसके दो प्रकार हैं। प्रत्येक और साधारण । कोई भी वृक्ष प्रत्येक हो या साधारण, उगते समय ( कोंपल अवस्था में) तो अनंतकाय ही होते हैं। फिर यदि प्रत्येक की जाति हो तो वृक्ष का मुख्य जीव रहता है और दूसरे सब जीव मर जाते हैं। प्रत्येक वनस्पतिकाय के सात अंगों में अलग-अलग जीव होते हैं। उन सात अंगों के नाम फल, फूल, छाल, काष्ठ, मूल, पत्ते और बीज । नियम : अ) अनंतकाय 32 हैं, उनका त्याग करना। ब) बाग-बगीचे में नहीं घूमना, घास ऊपर नहीं चलना । स) वृक्ष के पत्ते या फल नहीं तोड़ना, पेड़ को हाथ नहीं लगाना । द) सब्जी - मार्केट में हरी वनस्पति की बहुत उथल-पुथल नहीं करना । इ) तिथि के दिन हरी वनस्पति का त्याग करना । बीजवाले फलों को सुधारने की समझ जिन फलों में और सब्जियों में बीज मध्य-भाग में हो, उन नींबू वगैरह को मात्र ऊपर-ऊपर से पाव इंच ही चाकू लगाना, फिर दोनों तरफ से दोनों हाथ फिराने से बीज कटते नहीं है। बच जाते हैं। दूधी एवं परवल में भी ऊपर से ही चीरकर अंदर के बीज को बचा सकते हैं। D. सचित्त-अचित्त की समझ सचित्त : जीव सहित वस्तु अचित्त : ऐसी वस्तु जिसमें से जीव निकल गया हो। सफरजन = सेब वगैरह बीज वाले फलों को सुधारने के 48 मिनिट पश्चात् अचित्त का व्यवहार होता है। * एकाशना वगैरह तपश्चर्या में सचित्त वस्तु का उपयोग नहीं किया जा सकता। किसी वस्तु में डाला हुआ नमक यदि पिघल जाय तो चूल्हे पर रखे बिना ही 48 मिनिट में अचित्त हो जाता है। यदि नहीं पिघले तो सचित्त ही रहता है। जैसे की सींगदाणे की सूखी चटनी में डाला हुआ कच्चा नमक । * आखा जीरा सचित्त है। नमकीन, पापड़ी, वेफर वगैरह में ऊपर से कच्चा नमक डाला हो तो. 63Page Navigation
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